सुप्रीम कोर्ट ने 1992 की घटना को गलती माना, इसे सुधारने के लिए मुस्लिमों को 5 एकड़ जमीन देने को कहा
नई दिल्ली. 1528 में मीर बाकी ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद बनाई। 307 साल बाद 1885 में मामला पहली बार फैजाबाद अदालत पहुंचा। इसके 125 साल बाद 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पहला बड़ा फैसला दिया। इसे चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने आज फैसला सुनाया। इस फैसले से जुड़ी प्रमुख बातें क्या हैं, हिंदू-मुस्लिम पक्ष को इससे क्या मिला, सरकार की क्या भूमिका होगी और क्या इस फैसले से यह माना जाए कि अयोध्या विवाद का आखिरकार अंत हो गया, भास्कर APP इन्हीं सवालों के जवाब दे रहा है...
1. फैसले की सबसे बड़ी तीन बातें क्या हैं?
पहला- जन्मभूमि राम की ही है। बाबरी मस्जिद के नीचे जो ढांचा था, वह इस्लामिक नहीं था। दूसरा- मंदिर भी बनेगा और मस्जिद भी बनेगी। मंदिर विवादित जमीन पर और मस्जिद अयोध्या के अंदर किसी प्रमुख स्थान पर। तीसरा- केंद्र सरकार की भूमिका अब महत्वपूर्ण होगी। वह मस्जिद के लिए जमीन मुहैया कराने में मदद करेगी। मंदिर के लिए ट्रस्ट बनाएगी।
2. जमीन पर मालिकाना हक किसका है?
सुप्रीम कोर्ट ने विवादित 2.77 एकड़ की पूरी जमीन राम मंदिर के लिए दी है। यानी शीर्ष अदालत ने इसे राम जन्मभूमि माना है। निर्मोही अखाड़ा, हिंदू महासभा, शिया और सुन्नी वक्फ बोर्ड जैसे अलग-अलग पक्षों को इस जमीन पर हक नहीं दिया है। इसके साथ ही केंद्र सरकार इसके लिए स्वतंत्र है कि उसके द्वारा अधिग्रहित करीब 64 एकड़ जमीन को भी वह ट्रस्ट को विकास और अन्य कार्यों के लिए सौंप सकती है।
3. इस निर्णय से हिंदू पक्ष को क्या मिला?
सभी हिंदू संगठन विवादित भूमि पर राम मंदिर निर्माण चाहते थे, लेकिन जमीन के मालिकाना हक पर विवाद था। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब पूरी 2.77 एकड़ जमीन राम मंदिर बनाने में इस्तेमाल होगी। विवादित जमीन पर नियंत्रण का निर्मोही अखाड़ा का दावा सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया, लेकिन केंद्र से कहा कि अखाड़े को ट्रस्ट में प्रतिनिधित्व देने पर विचार करे।
4. मंदिर बनने की प्रक्रिया क्या होगी? यानी कौन बनवाएगा?
मंदिर बनाना ट्रस्ट के जिम्मे होगा। अयोध्या आंदोलन से जुड़ी संस्था राम जन्मभूमि न्यास भी सक्रिय है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस न्यास का जिक्र नहीं किया है। यह न्यास सरकार द्वारा गठित किए जाने वाले ट्रस्ट का हिस्सा जरूर बन सकता है। उधर, कारसेवकपुरम में अभी तक जितने पत्थर तराशे जा चुके हैं, उनसे 65% मंदिर तैयार हो जाएगा। अगर रोज 1500 से 2500 कारीगरों को काम पर लगाया जाता है तो भी मंदिर बनने में अभी ढाई साल लगेंगे।
5. मंदिर बनाने में सरकार की क्या भूमिका रहेगी?
सरकार को 3 महीने के अंदर ट्रस्ट और उसके काम करने के नियम-कायदे बनाने हैं। उसके बाद मंदिर निर्माण के लिए जमीन उस ट्रस्ट को सौंप देना है। चीफ जस्टिस ने कहा कि केंद्र सरकार ट्रस्ट के पदाधिकारियों के कार्यों, अधिकारों और शक्तियों को तय करे। यह ट्रस्ट मंदिर निर्माण, मंदिर प्रबंधन और उस क्षेत्र के विकास संबंधी कार्यों को देखेगा। विवादित क्षेत्र का बाहरी और भीतरी आंगन ट्रस्ट को दिया जाए। केंद्र सरकार इसके लिए स्वतंत्र है कि उनके द्वारा अधिग्रहित जमीन को भी वह ट्रस्ट को विकास व अन्य कार्यों के लिए नई बनाई जाने वाली स्कीम के तहत सौंप सकती है।
6. मुस्लिम पक्ष को क्या मिला?
विवादित ढांचे पर शिया वक्फ बोर्ड दावा कर रहा था। वहीं, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2010 के फैसले में विवादित जमीन का एक तिहाई हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने शिया बोर्ड का दावा खारिज कर दिया और सुन्नी वक्फ बोर्ड को नई मस्जिद बनाने के लिए अयोध्या में ही जमीन देने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ‘यह एकदम साफ है कि 16वीं शताब्दी का तीन गुंबदों वाला ढांचा हिंदू कारसेवकों ने ढहाया था, जो वहां राम मंदिर बनाना चाहते थे। यह ऐसी गलती थी, जिसे सुधारा जाना चाहिए था। अदालत अगर उन मुस्लिमों के दावे को नजरंदाज कर देती है, जिन्हें मस्जिद के ढांचे से अलग कर दिया गया तो न्याय की जीत नहीं होगी। गलती को सुधारने के लिए मस्जिद निर्माण के लिए जमीन दी जाए।’
7. मस्जिद के लिए जमीन कौन मुहैया कराएगा और यह जमीन कहां होगी?
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि केंद्र सरकार पवित्र अयोध्या के किसी प्रमुख स्थान पर मस्जिद निर्माण के लिए 5 एकड़ जमीन सुन्नी वक्फ बोर्ड को दे। चीफ जस्टिस ने कहा कि विवादित क्षेत्र को ट्रस्ट को सौंपे जाने के साथ-साथ केंद्र सरकार या तो अपनी अधिग्रहित 67 एकड़ जमीन में से सुन्नी वक्फ बोर्ड को 5 एकड़ जमीन दे। या फिर यह जमीन राज्य सरकार द्वारा अयोध्या में किसी अन्य प्रमुख स्थान पर दी जा सकती है। सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ जमीन देने के लिए केंद्र सरकार व राज्य सरकार आपसी सहमति से भी फैसला ले सकती हैं। सुन्नी वक्फ बोर्ड उन्हें दी जाने वाली पांच एकड़ जमीन पर स्वयं या अन्य किसी के सहयोग से मस्जिद बनाने के लिए स्वतंंत्र है।
8. क्या इस फैसले से विवाद का अंत हो चुका है? या इसे फिर चुनौती दी जा सकती है?
यह कहना अभी जल्दबाजी होगी। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा है कि वे सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए पुनर्विचार याचिका दाखिल करने पर विचार कर रहा है। एआईएमआईएम सांसद असदउद्दीन ओवैसी ने इसे तथ्यों की बजाय आस्था की जीत बताया है। हालांकि, उत्तर प्रदेश और सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड ने फैसले का स्वागत किया है और साफ किया है कि वे पुनर्विचार याचिका दाखिल नहीं करना चाहते।
9. इस मामले में अब सरकार की क्या भूमिका होगी?
सरकार के सामने तीन चुनौतियां होंगी। पहला- मंदिर निर्माण के लिए बनने वाला ट्रस्ट हिंदू संगठनों के आपसी मतभेदों का शिकार न बने। दूसरा- मस्जिद के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को 5 एकड़ की ऐसी जमीन दी जाए, जिस पर वह सहमत हो। तीसरा- मंदिर और मस्जिद, दोनों की निर्माण प्रक्रिया के दौरान उत्तर प्रदेश और देश में कानून व्यवस्था बरकरार रहे।
10. अपने फैसले तक पहुंचने के लिए कोर्ट के पास सबसे बड़े तीन आधार क्या थे?
- मस्जिद के नीचे जो ढांचा था, वह इस्लामिक ढांचा नहीं था। ढहाए गए ढांचे के नीचे एक मंदिर था, इस तथ्य की पुष्टि आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) कर चुका है।
- ढहाया गया ढांचा ही भगवान राम का जन्मस्थान है, हिंदुओं की यह आस्था निर्विवादित है।
- सुन्नी वक्फ बोर्ड विवादित जमीन पर अपना दावा साबित करने में विफल रहा। मस्जिद में इबादत में व्यवधान के बावजूद साक्ष्य यह बताते हैं कि प्रार्थना पूरी तरह से कभी बंद नहीं हुई।
(इनपुट :पवन कुमार)
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