बच्चे स्कूल जाने से मना कर रहे, लोगों ने कहा- यह छात्रों के बजाय स्कूल सिस्टम की खामी
टोक्यो. जापान में बहुत सारे बच्चे स्कूल जाने से मना कर रहे हैं। लोगों का कहना है कि यह छात्रों नहीं स्कूल सिस्टम की खामी है। फुटोको उन बच्चोंको कहा जाता है जो डर के कारण स्कूल जाने से मना कर देते हैं। जापान के शिक्षा मंत्रालय के अनुसार जो बच्चे स्वास्थ्य या वित्त संबंधीकारणों से 30 दिनों से ज्यादा समय तक स्कूल नहीं जाते हैं, उन्हें फुटोको कहते हैं। इस शब्द को कई रूपों में परिभाषित किया गया है। जैसे अनुपस्थिति, गैरहाजिरी, स्कूल फोबिया या स्कूल जाने से मना करना।
दस साल के युटा इटो भी उन्हीं (फुटोको) में से एक हैं। वह भी अब स्कूल नहीं जाना चाहता। हमेशा उसकी अपने क्लास में पढ़ने वाले अन्य छात्रों से लड़ाई होती रहती है। युटा के इस फैसले के बाद उसके माता-पिता के पास तीन विकल्प थे। युटा को स्कूल की काउंसलिंग में ले जाना। उसे होम-स्कूलिंग देना। या उसे फ्री स्कूल भेजना। उन्होंने आखिरी विकल्प चुना। फ्री स्कूल जाने के बाद से युटा बेहद खुश है। अब वह जो चाहताहै, वह करताहै।
1997 में फुटोको शब्द सामने आया
फुटोको की प्रवृत्ति पिछले कुछ दशकों में काफी बदली है। 1992 तक स्कूल जाने से मना करने को टोकोक्योशी कहा जाता था, जिसका मतलब प्रतिरोध था। इसे एक प्रकार की मानसिक बीमारी माना जाता था। लेकिन, 1997 में शब्दावली बदली और यह फुटोको हुआ, जिसका अर्थ गैर-उपस्थिति है। 17 अक्टूबर को सरकार ने घोषणा की कि प्राथमिक और जूनियर हाईस्कूल के छात्रों के बीच अनुपस्थिति रिकॉर्ड स्तर पर दर्ज की गई। इसमें 2017 में 1,44,031 बच्चे जबकि 2018 के दौरान 30 दिनों या उससे ज्यादा दिनों तक 1,64,528 बच्चे अनुपस्थित रहे।
1992 के फ्री स्कूलों में छात्रों की संख्या तेजी से बढ़ी
फुटोको के बढ़ते मामलों को देखते हुए जापान में 1980 के दशक में फ्री स्कूल मूवमेंट की शुरुआत हुई।फ्री स्कूलों में माहौल बहुत ही अनौपचारिक होता है। वहां बच्चे एक परिवार की तरह रहते हैं।एक फ्री स्कूल की प्रमुख ताकाशी योशिकावा का कहना है कि इस स्कूल का उद्देश्य लोगों के सामाजिक कौशल को विकसित करना है। ये होम-स्कूलिंग के साथ-साथ अनिवार्य शिक्षा का भी एक स्वीकृत विकल्प हैं। लेकिन, ये किसी भी तरह की कोई औपचारिक डिग्री नहीं देते हैं।1992 में जहां 7,424 बच्चे वैकल्पिक स्कूलों में जाते थे, वहीं 2017 में 20,346 बच्चे जाते हैं।
2018 मेंस्कूलआत्महत्या के 332 मामले दर्ज
स्कूल से बाहर निकलने के दीर्घकालिक परिणाम हो सकते हैं। इसका एक बड़ा खतरा यह है कि युवा समाज से पूरी तरह कट सकते हैं और खुद को अपने कमरों में बंद कर सकते हैं। इस तरह की घटनाओं को हिकिकोमोरी कहा जाता है। 30 साल में 2018 में सबसे ज्यादा 332 स्कूलों में आत्महत्या के मामले दर्ज किए गए। 2016 में छात्रों की आत्महत्या की बढ़ती संख्या ने जापान सरकार को स्कूलों के लिए विशेष सिफारिशों के साथ आत्महत्या रोकथाम कानून पारित करने के लिए प्रेरित किया।
शिक्षा मंत्रालय के सर्वे के मुताबिक पारिवारिक परिस्थितियां, दोस्तों के साथ व्यक्तिगत मुद्दे और डराना-धमकाना इनके मुख्य कारण है। कुछ ड्रॉपआउट्स छात्रों ने बताया कि उन्हें अन्य छात्रों या शिक्षकों का साथ नहीं मिला।1970 और 1980 के दशक में हिंसा और बदमाशी के जवाब में स्कूलों में कड़े नियम लागू किए गए।इन नियमों को ‘ब्लैक स्कूल नियम’ के रूप में जाना जाता है।जापान के कई स्कूल अपने छात्रों की उपस्थिति के हर पहलू को नियंत्रित करते हैं। छात्रों को अपने भूरे बालों को काला करने के लिए मजबूर किया जाता है। ठंड के मौसम में भी विद्यार्थियों को कोट पहनने की अनुमति नहीं देते। कुछ मामलों में वे विद्यार्थियों के अंडरवियर के रंग पर भी फैसले करते हैं।
आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
source https://www.bhaskar.com/international/news/japan-children-refuses-to-go-to-school-126366533.html
0 Comments