राफेल मामले की समीक्षा याचिकाओं पर आज फैसला

नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट 2018 के अपने आदेशकी समीक्षा करने वाली याचिकाओं पर गुरुवार को फैसला सुनाएगा। कोर्ट ने 14 दिसंबर 2018 को दिए गए अपने आदेश में राफेल डील को तय प्रक्रिया के तहत होना बताया था और सरकार को क्लीन चिट दी थी।कोर्ट ने 10 मई को इस मामले में दाखिल की गईरिव्यू पिटीशन पर फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस आदेश के खिलाफ पुनर्विचार याचिकाएं दाखिल की गईं थीं। वकील प्रशांत भूषण, पूर्व मंत्री यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी समेत अन्य ने राफेल डील मामले में जांच की मांग की थी।

10 मई को फैसले में क्या हुआ

  • चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच ने करीब सवा घंटा याचिकाकर्ताओं और आधा घंटा केंद्र सरकार की दलीलें सुनीं।
  • याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील प्रशांत भूषण ने मांग की कि एफआईआर दर्ज करवाकर राफेल डील की जांच सीबीआई से करवानी चाहिए।
  • केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा- यह कोई सड़क या पुल का ठेका नहीं है, बल्कि रक्षा सौदा है।
  • कांग्रेस नेता राहुल गांधी के खिलाफ अवमानना मामले में भी कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया।
  • राहुल पर सुप्रीम काेर्ट का गलत हवाला देकर ‘चाैकीदार चाेर है’ कहने का आराेप है।

13 मई को केंद्र सरकार ने राफेल से जुड़े दस्तावेज लीक होने के मामले में सुुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया था। इसमें केंद्र ने दलील दी कि राफेल मामले में जिन दस्तावेजों को आधार बनाकर पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई है,वे भारतीय सुरक्षा के लिए काफी संवेदनशील हैं। इनके सार्वजनिक होने से देश की सुरक्षा खतरे में पड़ी है। केंद्र ने कहा- याचिकाकर्ता यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी, प्रशांत भूषण संवेदनशील जानकारी लीक करने के दोषी हैं। याचिकाकर्ताओं ने याचिका के साथ जो दस्तावेज लगाए हैं वे प्रसारित हुए हैं, जोअब देश के दुश्मन और विरोधियों के लिए भी मौजूद हैं।

क्या है राफेल डील
राफेल फाइटर जेट डील भारत और फ्रांस की सरकारों के बीच सितंबर 2016 में हुई। इसके तहत भारतीय वायुसेना को 36 अत्याधुनिक लड़ाकू विमान मिलेंगे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह सौदा 7.8 करोड़ यूरो (करीब 58,000 करोड़ रुपए) का है।

एनडीए और यूपीए सरकार के दौरान मूल्य में कितना फर्क?
कांग्रेस का दावा है कि यूपीए सरकार के दौरान एक राफेल फाइटर जेट की कीमत 600 करोड़ रुपए तय की गई थी। मोदी सरकार के दौरान एक राफेल करीब 1600 करोड़ रुपए का पड़ेगा।

राफेल की कीमत में इतना अंतर क्यों?
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, यूपीए सरकार के दौरान सिर्फ विमान खरीदना तय हुआ था। इसके स्पेयर पार्ट्स, हैंगर्स, ट्रेनिंग सिम्युलेटर्स, मिसाइल या हथियार खरीदने का कोई प्रावधान उस मसौदे में शामिल नहीं था। फाइटर जेट्स का मेंटेनेंस बेहद महंगा होता है। मोदी सरकार ने जो डील की है, उसमें इन सभी बातों को शामिल किया गया है। राफेल के साथ मेटिओर और स्कैल्प जैसी दुनिया की सबसे खतरनाक मिसाइलें भी मिलेंगी। मेटिओर 100 किलोमीटर तक मार कर सकती है जबकि स्कैल्प 300 किमी तक सटीक निशाना साध सकती है। कांग्रेस की आपत्ति है कि इस डील में टेक्नोलॉजी ट्रांसफर का प्रावधान नहीं है। पार्टी इसमें एक कंपनी विशेष को फायदा पहुंचाने का आरोप भी लगाती है।

राफेल डील में ऑफसेट क्लॉज क्या है?
यह भी इस समझौते का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जा रहा है। ऑफसेट क्लॉज (एक ऐसी शर्त जो इस करार का हिस्सा है लेकिन इस्तेमाल दूसरी जगह होगा) के मुताबिक, फ्रांस इस करार की कुल राशि का करीब 50% भारत में रक्षा उपकरणों और इससे जुड़ी दूसरी चीजों में निवेश करेगा।

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राफेल लड़ाकू विमान। -फाइल फोटो


source https://www.bhaskar.com/national/news/rafale-fighter-jet-deal-verdict-supreme-court-live-dassault-rafale-deal-case-today-updates-01686335.html

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