जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा- आरटीआई के दायरे में आने से जनता में न्यायपालिका की विश्वसनीयता ही बढ़ेगी

नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने बुधवार को चीफ जस्टिस कार्यालय को आरटीआई के दायरे में आने का फैसला तो सुनाया है,पर इसके कुछ नियम भी तय किए हैं। संविधान पीठ ने कहा है कि न्यायिक नियुक्तियों में पारदर्शिता होनी चाहिए, लेकिन न्यायपालिका की स्वतंत्रता से संतुलन भी जरूरी है।

संविधान के अनुच्छेद-124 के तहत दिए गए फैसले में जस्टिस संजीव खन्ना के द्वारा लिखे फैसले पर चीफ जस्टिस गोगोई और जस्टिस दीपक गुप्ता ने सहमति जताई। वहीं जस्टिस रमना और जस्टिस चंद्रचूड़ ने कुछ मुद्दों पर अलग राय दी। जस्टिस रमना ने कहा कि आरटीआई का इस्तेमाल जासूसी के साधन के रूप में नहीं किया जा सकता है। वहीं जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि आरटीआई के तहत जवाबदेही से पारदर्शिता बढ़ेगी।

सूचना को कुछ तथ्यों के आधार पर परखा जाना जरूरी: जस्टिस रमना
जस्टिस रमना ने अलग से लिखे फैसले में कहा है कि आरटीआई से सुप्रीम कोर्ट से मांगी जाने वाली सूचना को इन तथ्यों के आधार पर परख जाना चाहिए:-
1. सूचना के कंटेंट की प्रकृति
2. सूचना न सार्वजनिक करने पर खतरा और लाभ
3. मांगी गई गोपनीय सूचना का प्रकार
4. सूचना मांगने वाले का विश्वास; उचित संदेह
5. किस तरह से सूचना मांगी गई है।
6. सूचना का आम व निजी हित क्या है?
7. अभिव्यक्ति की आजादी और आनुपातिकता का विवरण।

जजों के चयन और नियुक्ति का आधार परिभाषित हो: जस्टिस चंद्रचूड़
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि कॉलेजियम ने न्यायिक व्याख्या के लिए जन्म लिया है। महत्वपूर्ण अर्थों में कॉलेजियम अपने ही जन्मों की पीड़ा का शिकार है। उच्च न्यायपालिका में जजों के चयन और नियुक्ति को नियंत्रित करने वाले और व्यक्तिगत मामलों में उन मानदंडों के आवेदन, दोनों को नागरिकों ने सूचना के अधिकार को संवैधानिक अधिकार से जोड़ दिया है, जो आरटीआई अधिनियम से संभव हुआहै। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि इस तथ्य से कोई इंकार नहीं कर सकता है कि उच्च न्यायिक अधिकारी के लिए उम्मीदवारों का चयन करने और न्यायिक नियुक्तियां के लिए जिन मानदंडों पर ध्यान दिया जाता है, उनके बारे में जानने में सार्वजनिक हित एक महत्वपूर्ण तत्व है।

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प्रतीकात्मक चित्र।


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