भारतीय उद्यमी रज्जू श्रॉफ ने चीनी कंपनियों को मात देकर अमेरिकी बाजार में जगह बनाई
नई दिल्ली.अमेरिका-चीन के बीच चल रही तनातनी का फायदा उठाकर भारतीय उद्योगपति रज्जू श्राॅफ फिर से अरबपति बन गए हैं। उन्हें हाल ही में फोर्ब्स ने 100 भारतीय रईसों की सूची में 87 वां स्थान दिया है। उनकी कंपनी यूनाइटेड फास्फोरस लिमिटेड (यूपीएल) के शेयरों में इस साल आई 31 फीसदी की तेजी की वजह से फोर्ब्स ने उनकी संपत्ति का आकलन 1.69 अरब डॉलर किया है। 85 वर्षीय श्रॉफ ने माचिस में इस्तेमाल होने वाले लाल फास्फोरस को बनाने के लिए साल 1969 में यूपीएल कंपनी की स्थापना की।यह पहली देसी कंपनी थी जो विदेशी कंपनी की तुलना में सस्ता फास्फोरस बना रही थी। वह अभी भी अपने परिवार के साथ लगभग 27% हिस्सेदारी रखते हैं। उनके बेटे जय और विक्रम अब कंपनी का प्रबंधन करते हैं।
अमेरिकी कंपनी को 4.2 अरब डॉलर में खरीदा
श्रॉफ के एक फैसले से इस साल कंपनी की आमदनी में जोरदार इजाफा हो गया। कंपनी ने फरवरी में अमेरिका की 4.2 अरब डॉलर में एरिस्टा लाइफसाइंस को खरीद लिया। इसके जरिए यूपीएल फसल सुरक्षा उत्पादों में दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी उत्पादक बन गई है। इसी बीच अमेरिका-चीन के बीच शुरू हुए ट्रेड वार के चलते अमेरिका में एग्रो केमिकल्स के लिए चीन से आयात करना महंगा पड़ने लगा।
श्रॉफ ने रणनीतिक सूझबूझ से अपनी खरीदी हुई अमेरिकन कंपनी के जरिए सीधे अमेरिकी बाजार में पैठ बना ली। इसके चलते महज चार महीने में ही यानी जून 2019 तक उत्तरी अमेरिका में कंपनी की बिक्री 6 प्रतिशत बढ़ गई। यही नहीं, कंपनी को दूसरा फायदा चीन से भी हुआ। चीन ने ट्रेड वार के चलते सोयाबीन के लिए दूसरे देशों का रुख किया। चीन ने ब्राजील से सोयाबीन का आयात शुरू किया तो वहां भी किसानों को चीन की डिमांड पूरा करने के लिए भारतीय कंपनी से एग्रो केमिकल उत्पाद खरीदने पड़े।कंपनी को हुए इसी दोहरे फायदे की वजह से जुलाई में शेयर मार्केट में कंपनी का प्रति शेयर 709 रुपए तक पहुंच गया जबकि इससे एक साल पहले तक यह 450 से 500 रुपए तक रहता था।5 नवंबर 2019 को भी कंपनी का शेयर 599 रुपए तक रहा। यूपीएल के सीओओ डिएगो कैसनेलो बताते हैं कि अमेरिका-चीन ट्रेड वार की वजह से हुई अनिश्चितता में भी कंपनी ने अपने ग्राहकों का विश्वास बनाए रखा।
चार करोड़ रुपए में लगने वाले प्लांट को सिर्फ 4 लाख में शुरू कर दिखाया
60 के दशक में विदेशी कंपनियां माचिस के लिए लाल फास्फोरस का प्लांट 4 करोड़ रुपए में लगाती थी। श्रॉफ ने महज चार लाख रुपए में यह काम कर दिखाया। स्वीडिश कंपनी विमको की माचिस तब काफी लोकप्रिय थी। विमको ने आरोप लगाया कि इतनी कम राशि में प्लांट लगाना संभव ही नहीं है। जरूर सुरक्षा नियमों और प्रदूषण मानकों का उल्लंघन हुआ होगा। तकनीकी विकास महानिदेशक और राष्ट्रीय अनुसंधान और विकास कॉर्पोरेशन को जांच करने के लिए वापी आना पड़ा। टीम को प्लांट एकदम सुरक्षित मिला। लिहाजा, इस घटना के ठीक एक साल बाद श्रॉफ को लघु उद्योग में नए प्रयोग के लिए राष्ट्रपति शील्ड से सम्मानित किया गया।
सस्ते कीटनाशक बनाकर किसानों की आय बढ़ाने की कोशिश
श्रॉफ बताते हैं कि इस घटना के बाद उन्होंने कृषि क्षेत्र में रसायनों के इस्तेमाल से पैदावार बढ़ाने की कोशिश की। तब हरित क्रांति के लिए जरूरी था कि सस्ते कीटनाशकों का उत्पादन हो। श्रॉफ ने कीटनाशकों, के लिए रिसर्च कर नई फैक्ट्रियों की स्थापना की। अब 30 से अधिक देशों में उनकी कंपनियां हैं और 70 से अधिक देशों में उनकी कंपनी कारोबार करती है। रज्जू श्रॉफ बताते हैं कि शुरूआती दिनों में परिवार को यह समझाना भी मुश्किल था कि वापी में कोई उद्योग शुरू हो सकता है। वह भी तब जबकि परिवार की इंग्लैंड जैसे देशों में फैक्टियां हो। श्रॉफ बड़ी मुश्किल से परिवार को वापी में लाल फास्फोरस के निर्माण के लिए मना पाए। शुरूआत में वापी में रिक्शा या टैक्सी तक नहीं थी।
आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
source /national/news/indian-entrepreneur-rajju-shroff-defeated-chinese-companies-to-make-a-place-in-us-market-01683895.html
0 Comments