लोअर कोर्ट ने 252, हाईकोर्ट ने 158 और सुप्रीम कोर्ट ने 1008 दिन लिए; अब फैसला 7 जनवरी तक टला

नई दिल्ली (पवन कुमार/नीरज आर्या).देश को झकझोर देने वाला निर्भया कांड। पुलिस ने 18 दिन में चार्जशीट फाइल कर दी थी। करीब सात साल बीत चुके हैं। आज तक 2566 दिन। कानून बदले, सख्ती बढ़ी, लेकिन नहीं हुई तो अब तक गुनहगारों को फांसी। कहने को तो यह पहला ऐसा सामूहिक दुष्कर्म व हत्या का बड़ा मामला था, जिसमें फैसले तेजी से हुए। मगर फिर भी न्याय की रफ्तार देश के सामने है। भास्कर ने इस पूरे केस का विस्तृत अध्ययन किया, जिम्मेदारों से बात की। यह जानने की कोशिश कीकि आखिर निर्भया के इंसाफ में इतनी देरी क्यों हुई?

कोर्ट ने उतना ही समय लिया, जितना लगता है :पब्लिक प्रॉसीक्यूटर
केस में पीड़िता की ओर से पैरवी करने वाले स्पेशल पब्लिक प्रॉसीक्यूटर राजीव मोहन ने बताया कि निर्भया केस में न्यायिक संस्था ने हर स्तर पर सही तरीके से काम किया है। कोर्ट में कौन सा केस कितने दिन चलेगा? यह कोर्ट तय नहीं करती। बल्कि तथ्यों के आधार पर कोर्ट किसी केस का निपटारा करती है। हर स्तर पर कोर्ट ने फैक्ट के अनुसार सुनवाई की, उतना समय ही लिया, जितना इसमें लग सकता था।

दोषियों को फांसी मिलने पर ही होगाइंसाफ: इंवेस्टीगेशन ऑफिसर

इस केस की पहली इंवेस्टीगेशन ऑफिसर प्रतिभा शर्मा थीं। निर्भया केस में वह ऐसी महिला अधिकारी थीं जो निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट में हुई हरेक सुनवाई के दौरान कोर्ट में इंस्पेक्टर अनिल शर्मा के साथ हाजिर रहीं। इंस्पेक्टर प्रतिभा शर्मा का कहना है कि दुष्कर्म के मामले में सख्त कानून बनने के बाद भी हालात नहीं बदल सके हैं। उन्होंने कहा कि मेरा सोचना है कि घर से ही बच्चों को संस्कार मिलते हैं। वहीं से महिलाओं की इज्जत करना सीखना या सिखाना होगा। जिस दिन दोषी फांसी के फंदे पर लटकेंगे उस दिन निर्भया को सही मायनों में इंसाफ मिलेगा।

तारीखों में ऐसे उलझा रहा इंसाफ

दोषी केस लंबा खींच रहे हैं, ऐसा नहीं होना चाहिए
निर्भया की मां आशा देवी का कहना है-पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों की पुनर्विचार याचिका खरिज की। तिहाड़ जेल प्रशासन को उन्हें फांसी देनी चाहिए थी। उन्हांेने देरी की, दोषी हाईकोर्ट, राष्ट्रपति के पास पहुंचे।

निर्भया केस में मिस्कैरिज ऑफ जस्टिस हुआ है
आरोपियों के वकील एपी सिंह का कहना है-यह केस अदालतों द्वारा जल्दबाजी में निपटाया गया है। केस का मीडिया ट्रायल होने की वजह से इस मामले में मिस्कैरिज ऑफ जस्टिस हुआ है। तथ्यों को अनसुना किया गया है।



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फाइल फोटो


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