कसाब-याकूब की फांसी की अगुवाई कर चुकीं पूर्व आईजी मीरां बोरवणकर बोलीं- रेप के बाद हत्या जैसे मामलों में मौत की सजा सही
भोपाल. दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने निर्भया के चारों दुष्कर्मियों का डेथ वारंट जारी कर दिया है। अगर सुप्रीम कोर्ट या राष्ट्रपति की ओर से कोई रोक न लगाई गई तो 22 जनवरी को सुबह 7 बजे तिहाड़ जेल में अक्षय कुमार सिंह (उम्र 31 साल), पवन गुप्ता (25), मुकेश (32) और विनय शर्मा (26) को फांसी दे दी जाएगी। डेथ वॉरंट के बाद फंसी पर चढ़ाए जाने तक की प्रक्रिया और किसी भी मामले में फांसी की सजा की जरूरत पर भास्कर ने महाराष्ट्र की पूर्व आईजी (जेल) मीरां बोरवणकर से बात की। इस मामले में मीरां से ही बात करने की एक खास वजह है- मीरां देश की एक मात्र ऑफिसर हैं, जिन्होंने पिछले 8 साल में हुए दो फांसियों को अमल में लानी वाली टीम की अगुवाई की है। मीरां की टीम ने 21 नवंबर 2012 को आतंकी अजमल कसाब और 30 जुलाई 2015 को याकूब मेमन को फांसी पर चढ़ाया था। मीरां बोरवणकर ने बताया कि डेथ वॉरंट के बाद फांसी देने की प्रक्रिया में करीब 15 दिन का वक्त लगता है। यह प्रक्रिया कानूनी तौर पर बेहद पेचीदा होती है।
क्या सभी राज्यों में फांसी की प्रक्रिया एक जैसी होती है?
मीरां: प्रत्येक राज्य का अपना प्रिजन मैनुअल होता है। ये प्रिजन मैनुअल करीब-करीब एक जैसे ही होते हैं। इसी हिसाब से प्रशासन फांसी की सजा देता है। हर राज्य की पुलिस इस मैनुअल को फॉलो करती है। डेथ वॉरंट जारी होने के बाद फांसी दिए जाने वाले कैदी को बाकी कैदियों से अलग रखा जाता है। उसका मेडिकल चैकअप किया जाता है। उसकी सिक्युरिटी बढ़ा दी जाती है और जेल सुप्रिटेंडेंट उसकी आखिरी ख्वाहिश भी ले लेता है। उसे परिवार से भी मिलवाया जाता है। इसके अलावा जेल प्रशासन फांसी वाले दिन मजिस्ट्रेट, मेडिकल अफसर और कैदी के धर्म से जुड़े लोगों को फांसी के दौरान मौजूद रहने की व्यवस्था करता है।
क्या फांसी की सजा होनी चाहिए?
मीरां: अगर रेप के बाद विक्टिम का मर्डर किया गया है, तो जरूर दोषी को फांसी की सजा होनी चाहिए। इसके अलावा कोई आतंकी हमला है, जैसे कसाब ने 26/11 हमले में कई बेगुनाहों का खून बहाया था या रेयरेस्ट ऑफ रेयर मामले में फांसी की सजा देना एकदम सही है।
अभी तत्काल सजा को लेकर भी बहस हो रही है, खासकर हैदराबाद एनकाउंटर के बाद...
मीरां: इंसाफ में देरी पर जनता निराश होती है। इसीलिए हैदराबाद में गैंगरेप के आरोपियों के पुलिस एनकाउंटर में मारे जाने पर देश में स्वागत किया जाता है। मुझे कई लोग पूछते हैं कि निर्भया के दोषी आज भी जिंदा क्यों हैं? कसाब को आपने 4 साल बाद फांसी क्यों दी? जब दोषियों को समय पर सजा नहीं होती, तो लोग बैचेन हो जाते हैं और इसलिए वह एनकाउंटर को ठीक बताने लगते हैं। लेकिन मैं खुद ये बात मानती हूं कि एनकाउंटर से जुर्म को खत्म नहीं किया जा सकता। ये कानून के लिए वाकई बहुत बुरा है।
लेकिन न्याय मिलने में देरी की वजह से अफवाहें भी फैलती हैं... एक वाकया सुनाती हूं- थोड़े दिन पहले एक कैब का ड्राइवर मुझसे बोल रहा था, उसे नहीं पता था कि मैं कौन हूं, वो मुझे बोलता है कि मैडम, आप लोग पढ़े-लिखे लोग हो, तो कसाब की सुरक्षा के लिए हर दिन एक करोड़ रुपए का खर्च क्यों किया आपने? मैंने पूछा कि तुमको ये किसने बोला? वो बोला- मैंने तो पढ़ा है। फिर उसने मुझसे कहा कि आपको पता है कि कसाब को हर दिन जेल में मिठाई खिलाई जाती थी।
कसाब को फांसी देने के दौरान कुछ हुआ था?
मीरां: जब कसाब को फांसी दी गई तो कई लोगों ने मुझसे कहा कि कसाब तो पहले ही मर गया था, फिर आपने ये नाटक क्यों किया? कसाब के मामले में लोगों में इतनी अफवाहें हैं कि वो समझते हैं कि वो रोज टमाटर की टोकरी चाहता था, वो रोज बिरयानी और मिठाई खाता था। इन बातों से यही सिद्ध होता है कि हमारी न्याय प्रक्रिया में एक साल के भीतर न्याय दे देना बहुत जरूरी है। नहीं तो लोग क्रोधित होते हैं और फिर इन देरी से अलग-अलग अफवाहें फैलती जाती हैं। इन सबकी वजह से देश में अनुशासनहीनता का वातावरण भी बन जाता है।
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source https://www.bhaskar.com/db-originals/news/meeran-chadha-borwankar-former-ig-on-nirbhaya-rape-case-convicts-death-warrant-for-hanging-126469992.html
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