जेके लोन में 4 और नवजात ने दम तोड़ा, 36 दिन में 110 मौतें; जोधपुर-बीकानेर के अस्पतालों की हालत भी बदतर

कोटा (राजस्थान).कोटा के जेके लोन अस्पताल में शनिवार रात तक चार और नवजातों ने दम तोड़ दिया। यहां 36दिन में 110 बच्चों की मौत हो चुकी है। कोटा के अलावा जोधपुर और बीकानेर के सरकारी अस्पतालों में भी बच्चों की मौतें हो रही हैं। इनमें ज्यादातर नवजात हैं। दिसंबर में जोधपुर में 146 और बीकानेर के सरकारी अस्पतालोंमें 162 बच्चों की जान गई। शनिवार को कोटा पहुंचे उप-मुख्यमंत्री सचिन पायलट ने कहा था कि बच्चों की मौत गंभीर मामला है, इसके लिए जिम्मेदारी तय होनी चाहिए।

जोधपुर: सीएम के गृहनगर की स्वास्थ्य सेवाएं बदतर

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के गृहनगर जोधपुर में बेहतर इलाज और सुविधाएं नहीं मिलने से डॉ. सम्पूर्णानंद मेडिकल कॉलेज में महीनेभर में 146 बच्चे दम तोड़ चुके हैं। इसमें से 102 नवजात थे। मेडिकल कॉलेज के अधिकारी इसे सामान्य बता रहे हैं, वहीं मुख्यमंत्री शनिवार कोबच्चों के मरने के सवाल को अनसुना कर निकल गए। जोधपुर मेडिकल कॉलेज एमडीएम और उम्मेद अस्पताल में शिशु रोग विभाग का संचालन करता है। यहां 5 जिलों- जैसलमेर, बाड़मेर, जालौर, सिरोही और पाली से मरीज आते हैं। दिसंबर में यहां के शिशु रोग विभाग में 4689 बच्चे भर्ती हुए थे, इनमें 3002 नवजात थे। इलाज के दौरान 146 की मौत हो गई।

बीकानेर: 1 माह में 162 और साल में 1681 की मौत
बीकानेर के पीबीएम शिशु अस्पतालमें दिसंबर के 31 दिनों में 162 बच्चों की मौत हो गई। मतलब यह कि हर दिन पांच से ज्यादा बच्चों की मौत हो रही है। दिसंबर में यहां जन्मे और बाहर से आए 2219 बच्चे अस्पतालमें भर्ती हुए थे। इन्हीं में से 162 यानी 7.3% बच्चों की मौत हो गई। पूरे साल की बात करें तो जनवरी से दिसंबर तक यहां कुल 1681 बच्चों की मौत हो चुकी है।

हम जिम्मेदारी से नहीं बच सकते: पायलट

सचिन पायलट ने कहा कि इतने सारे बच्चे मरे हैं और कोई जिम्मेदारही नहीं होगा, ऐसा संभव नहीं है। अगर वसुंधरा सरकार में बेड कम थे, पैसे ज्यादा अलॉट हुए, लेकिन रिलीज नहीं किए गए तो उनको तो जनता ने हरा दिया। एक साल से हम लोग शासन में हैं। हमारी जिम्मेदारी बनती है कि जनता के प्रति। इतने सारे मासूम बच्चों की मौत हुई तो जवाबदेही ढूंढनी होगी। इस पूरे मामले में हमारे उठाए कदम संतोषजनक नहीं हैं। मैं इसलिए बोल रहा हूं, क्योंकि आंकड़ों के जाल में हम उलझ गए। जिस घर में मौत होती है, जिस मां ने कोख में बच्चे को 9 माह रखा, उसकी कोख उजड़ती है तो दर्द वही जानती है।

देश में शिशु मौत वाले टॉप-10 अस्पतालों में राजस्थान का एक भी नहीं
कोटा में शिशु मौतों पर बवाल के बीच दूसरा पहलू भी है। देश में शिशु मौतों में टॉप-10 अस्पतालों में राजस्थान का एक भी नहीं है। एनएचएम की स्पेशल न्यूबॉर्न केयर यूनिट की रिपोर्ट के ये आंकड़े सरकार ने जारी किए हैं।

हॉस्पिटल शिशु मौतें
महात्मा गांधी मेमोरियल हॉस्पिटल वारंगल, तेलंगाना 56.5%
उत्तरप्रदेश यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिकल साइंसेज, सेफई 44.4%
नेशनल मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल, पटना 40.3%
पीएमसीएच, पटना 35.3%
अनुग्रह नारायण मगध मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल, गया 35.3%
राम मनोहर लोहिया अस्पताल, लखनऊ 31.6%
झारखंड के जिला अस्पताल, वेस्ट सिंहभूम 29.4%
जेएलएनएमसीएच अस्पताल,भागलपुर 26.1%
एमसी-एएमयू अस्पताल,अलीगढ़ 26.1%
जीएमईआरएस गोटड़ी अस्पताल,वड़ोदरा 25.0%

भास्कर आपको एक्सपर्ट की मदद से बता रहा ये हैं मौतों के जिम्मेदार?

जेके लोन अस्पताल में 35 दिन में 107 बच्चों की मौत हो चुकी है। डिप्टी सीएम कह रहे हैं कि हमें इन बच्चों की मौत पर जवाबदेही तय करनी होगी। चिकित्सा मंत्री कहकर गए थे कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा, लेकिन एकमात्र अधीक्षक को पद से हटाकर इतिश्री कर ली गई, जिसे कोई सजा मानने को तैयार नहीं। भास्कर ने इस मुद्दे पर एक्सपर्ट से बातचीत के आधार पर चार्जशीट तैयार की, जो बताती है कि कौन-कौन इस पूरे प्रकरण के लिए जिम्मेदार थे...

अफसर : व्यवस्थाएं बदहाल होती रहीं, ये देखते रहे

अधीक्षक : डॉ. एचएल मीणा
मामले के तूल पकड़ने के बाद हटा दिए गए हैं। उपकरणों को ठीक कराने, रखरखाव के टेंडर करने, सेंट्रल ऑक्सीजन लाइन लगाने समेत अन्य काम उन्हें कराने थे, लेकिन फेल रहे।
विभाग : पहले मौतों के कारण पैदा किए, अब जाकर चेते।

नगर निगम : अस्पताल परिसर गंदगी से अटा पड़ा रहता है। वहां सूअर घूमते हैं। वार्डों में घुस जाते हैं। समय रहते कुछ नहीं किया। अब एक ही रात में 60 सूअर पकड़े, 300 कर्मचारी लगाकर सफाई करवाई।
दो खामियां : टूटी खिड़कियां, खराब वॉर्मर, 1 गायनी व पीडियाट्रिक्स विभाग के ज्यादातर वार्डों की खिड़कियां थीं। इस वजह से पूरी रात जच्चा-बच्चा शीतलहर की चपेट में आ गए। बच्चों की तापमान मेंटेन करने के लिए वॉर्मर भी पर्याप्त नहीं थे।

एचओडी : डॉ. अमृतलाल बैरवा
शिशु रोग विभाग के एचओडी हैं। हर मुद्दे पर गेंद अधीक्षक के पाले में फेंकते रहे। समस्याओं को दूर करने के ठोस प्रयास नहीं किए। इस मामले से पहले वे जेकेलोन अस्पताल ही यदाकदा आकर देखते थे।

पीडब्ल्यूडी : लंबे समय से भवन के रखरखाव में लापरवाही बरती जा रही है। कड़ाके की ठंड और शीतलहर के बावजूद वार्डों की टूटी खिड़कियां तक ठीक नहीं कराई गई। अब काम शुरू कराया।

2 एफबीएनसी यूनिट में साढ़े 3 माह तक टॉयलेट का गंदा पानी टपकता रहा। जिसने अप्रत्यक्ष रूप से इंफेक्शन दिया। यहां नवजात भर्ती रहते है। अब चंद रुपयों में नल की टोंटी ठीक कराते ही समस्या दूर।



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कोटा का जेके लोन सरकारी अस्पताल।


source https://www.bhaskar.com/rajasthan/kota/news/three-more-infant-deaths-at-kota-hospital-toll-rises-to-110-126441816.html

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