2019 में देश में 4196 घंटे इंटरनेट बंद रहा, इनमें से 3692 घंटे अकेले कश्मीर में
नई दिल्ली. अनुच्छेद 370 हटने के बाद से कश्मीर में जारी इंटरनेट पर पाबंदी को लेकर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि इंटरनेट एक्सेस दिया जाना संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत लोगों का बुनियादी हक है। कोर्ट ने ये भी कहा कि इंटरनेट अनिश्चितकाल के लिए बंद नहीं किया जा सकता,लेकिनडिजिटल प्राइवेसी और साइबर सिक्योरिटी पर काम करने वाली टॉप-10 वीपीएन वेबसाइट की रिपोर्ट के अनुसार, 2019 में भारत में अलग-अलग हिस्सों में 4 हजार 196 घंटे इंटरनेट बंद रहा। इससे 9 हजार 300 करोड़ रुपए से ज्यादा का नुकसान हुआ है। सबसे ज्यादा घंटों तक इंटरनेट पर रोक लगाने के मामले में म्यांमार और चाड के बाद भारत तीसरे नंबर पर रहा। म्यांमार में 4 हजार 880 और चाड में 4 हजार 728 घंटे इंटरनेट पर रोक लगी।
रिपोर्ट के मुताबिक, 2019 में दुनिया के 21 देशों में 18 हजार 225 घंटे इंटरनेट बंद रहा। इनमें 11 हजार 857 घंटे इंटरनेट और 6 हजार 368 घंटे सोशल मीडिया पर पाबंदी रही। इससे दुनिया की इकोनॉमी को 57 हजार 324 करोड़ रुपए से ज्यादा का नुकसान हुआ है।
कश्मीर में सबसे ज्यादा लंबे समय तक इंटरनेट बंद, इससे राज्य को 7 हजार करोड़ से ज्यादा नुकसान
रिपोर्ट के अनुसार जम्मू-कश्मीर में 1 जनवरी से 31 दिसंबर 2019 तक 3 हजार 692 घंटे इंटरनेट बंद रहा। इससे राज्य को 2019 में 7 हजार 600 करोड़ रुपए से ज्यादा का नुकसान हुआ। इंटरनेट शटडाउन वेबसाइट के अनुसार कश्मीर में पिछले 159 दिनों से इंटरनेट पर पाबंदी है, जो 4 अगस्त 2019 से ही लागू है। ये अब तक की सबसे ज्यादा दिनों तक लगाई गई पाबंदी है। इससे पहले 2016 में 133 दिनों तक कश्मीर में इंटरनेट बंद रहा था। उस वक्त बुरहान वानी की मौत के बाद 8 जुलाई से 19 नवंबर 2016 तक इंटरनेट बंद था।
म्यांमार, चाड में सबसे ज्यादा समय तक इंटरनेट बंद, लेकिन नुकसान भारत का ज्यादा
इस रिपोर्ट के अनुसार सबसे ज्यादा घंटों तक म्यांमार और उसके बाद चाड में इंटरनेट बंद रहा। इससे म्यांमार को 535 करोड़ रुपए और चाड को 900 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। जबकि, भारत को म्यांमार की तुलना में 18 गुना और चाड की तुलना में 11 गुना ज्यादा नुकसान हुआ। सबसे ज्यादा घंटों तक इंटरनेट बंद रखने के मामले में चौथे नंबर पर सूडान रहा, जहां 1560 घंटों तक इंटरनेट पर पाबंदी रही। जबकि, 456 घंटों की पाबंदी के साथ कॉन्गो 5वें नंबर पर रहा।
विरोध प्रदर्शन रोकने के लिए सबसे ज्यादा इंटरनेट पर पाबंदी लगी
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2019 में सरकारों ने अपने खिलाफ विरोध प्रदर्शनों को रोकने के लिए इंटरनेट पर रोक लगाई। ऐसा ज्यादातर चुनाव के समय होता है, ताकि सरकार अपनी पकड़ मजबूत रख सके। इंटरनेट पर पाबंदी से अर्थव्यवस्था को सबसे ज्यादा नुकसान कम विकसित देशों में होता है, क्योंकि इससे निवेशकों का भरोसा उठता है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इंटरनेट पर पाबंदी लगाना न सिर्फ नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का हनन है बल्कि डेमोक्रेटिक प्रोसेस के लिए भी खतरनाक है। बार-बार इंटरनेट पर रोक लगाने से हिंसा भड़कने का खतरा होता है।
इंटरनेट पर रोक लगाने के मामले में भारत सबसे आगे
स्टेट ऑफ इंटरनेट शटडाउन की 2018 की रिपोर्ट बताती है कि इंटरनेट पर रोक लगाने के मामले में भारत दुनिया में सबसे आगे है। 2018 में भारत में 134 बार इंटरनेट पर रोक लगाई गई थी। इनमें से 65 बार जम्मू-कश्मीर में ही इंटरनेट बंद किया गया था। इंटरनेट बंद करने के मामले में पाकिस्तान दूसरे नंबर पर था, जहां 2018 में सिर्फ 12 बार इंटरनेट पर पाबंदी लगी।
इंटरनेट पर रोक लगाने पर क्या कहता है भारतीय कानून?
सीआरपीसी 1973 और इंडियन टेलीग्राफ एक्ट 1885 के तहत सरकारी एजेंसियों को भारत के राज्यों या जिलों में इंटरनेट बंद करने का अधिकार है। इसके अलावा टेम्पररी सस्पेंशन ऑफ टेलीकॉम सर्विसेज (पब्लिक एमरजेंसी या पब्लिक सेफ्टी) रूल्स 2017 के आधार पर भी सरकार टेलीकॉम कंपनियों को अपनी सेवाएं निलंबित करने को भी कह सकती है।
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source https://www.bhaskar.com/db-originals/news/kashmir-india-internet-shutdown-statistics-net-loss-know-how-many-times-myanmar-chad-126489019.html
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