बेटियों को पढ़ने के लिए बाहर भेजने से कतराते हैं लोग, दोषियों के फांसी पर लटकने का इंतजार

निर्भया के गांव से रिपोर्ट. बलिया जिला मुख्यालय से 45 किमी दूर मेडौला कलां गांव है। दिसंबर 2012 के बाद से आसपास के इलाकों में यह गांव निर्भया के गांव के नाम से जाना जाता है। 16 दिसंबर को इस गांव की बेटी निर्भया के साथ दिल्ली में दरिंदगी हुई थी। दोषियों का डेथ वारंट जारी होने के बाद करीब 250 घरों वाले इस गांव में खुशी और संशय का माहौल है। संशय इस बात का कि 7 साल बाद भी दोषी फांसी के फंदे पर लटक पाएंगे या नहीं?

बलिया-बक्सर हाईवे पर करीब तीन किमी चलने पर निर्भया का गांव है। गांव में घुसते ही खेत में प्याज के पौधों की कुछ महिलाएं रोपाई कर रहीं थीं। जब निर्भया के दोषियों को जल्द फांसी होने को लेकर उनकी प्रतिक्रया पूछी तो जवाब मिला- इतना टाइम लग गईल, 22 को पहले देखत ला, का होत है....।

16-17 साल की थी, तब निर्भया गांव आई थी
निर्भया के गांव की रोड जर्जर है। हालत इतनी खराब है कि वाहनों को 10 किमी प्रति घंटाकी स्पीड से तेज चलाना मुश्किल है। गांव के बीचों-बीच निर्भया का घर है। जब हम पहुंचे तो निर्भया के पुश्तैनी घर का दरवाजा खुला था। चाचा सुरेश सिंह, चचेरे दादा शिवमोहन सिंह और चचेरी बहन शांति सिंह आने जाने वालों से मुलाकात कर रही थीं। कैमरा देखते ही निर्भया का परिवार-रिश्तेदार समझ गए कि मीडिया से हैं। बातचीत के दौरान निर्भया के चाचा सुरेश सिंह ने बताया कि निर्भया के पिता शादी के बाद ही करीब 25 से 27 साल पहले दिल्ली शिफ्ट हो गए। वहां वह कुकर बनाने की कंपनी में पहले काम करते थे। उनके सभी बच्चे दिल्ली ही रहते हैं।निर्भया आखिरी बार जब 16-17 साल की थी, तब गांव आई थी।

चचेरी बहन ने कहा- डर अभी पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ

अदालत ने चारों दोषियों को डेथ वॉरंट जारी कर दिया है इस सवाल पर निर्भया की चचेरी बहन बोली- जब तक फांसी न हो जाए, तब तकविश्वास नहीं होगा। वह आगे कहती हैं कि दीदी के साथ जैसी घटना हुई, उससे सभी डर गए थे। वह डर आज भी पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है। हैदराबाद में वेटरनरी डॉक्टर्स वाले मामले में जो पुलिस ने किया, वो ठीक था। दुष्कर्मियों को जेल में रखने से क्या फायदा?

बहन ने यह भी कहा कि दीदी के साथ हुई घटना के बाद तब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने गांव में अस्पताल और बालिका इंटर कॉलेज बनवाने का ऐलान किया था, लेकिन कुछ नहीं हुआ। कोई बीमार हो जाए तो उसे बक्सर ले जाना पड़ता है। गांव में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बना है,लेकिन डॉक्टर नहीं है। फार्मासिस्ट की तैनाती है, लेकिन वह कभी-कभार आता है। अगर गांव की लड़की को इंटर तक भी पढ़ाई करनी होती है तो भरौली इंटर कालेज जाना होता है, जो कि 10-12 किमी दूर है।

'बेटियों को बाहर भेजने से कतराते हैं परिजन'

निर्भया के चाचा सुरेश सिंह बताते हैं कि उस घटना के बाद से गांव के लोग लड़की को बड़े शहरों में पढ़ने से भेजने से कतराते हैं। जो बाहर हैं, उनके बच्चे तो बाहर पढ़ते हैं। घटना के बाद से गांव से किसी लड़की को पढ़ाई के लिए बाहर नहीं भेजा गया। निर्भया के मामले में वह कहते हैं कि बिटिया को इंसाफ मिलने में बहुत देरी हुई। कोर्ट के फैसले पर खुशी तो है, लेकिन हैदराबाद में जिस तरह पुलिस ने काम किया, वैसा हो तो ज्यादा खुशी होती। निर्भया के चचेरे दादा शिवमोहन कहते हैं कि न्याय मिलने में देरी हुई है। इसलिए देश में दरिंदो की संख्या बढ़ गई है।तुरंत इंसाफ मिलना चाहिए।

बातचीत के दौरान गांव के कई लोग वहां आकर बैठ गए। सबको 22 जनवरी का इंतजार है। जब गांव की बेटी के साथ दरिंदगी करने वाले दोषियों को फांसी के फंदे पर लटकाया जाएगा।



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निर्भया के गांव के बाहर खेत में काम करने वाली महिलाएं तब मिठाई बांटेंगी, जब दरिंदों को फांसी पर लटकाया जाएगा।
निर्भया की बहन ने कहा- जब दोषियों को मिलेगी फांसी तब दीदी को मिलेगी शांति।
निर्भया का गांव हाईवे से 3 किलोमीटर दूर है, यहां तक पहुंचने के लिए सड़क बदहाल है।
निर्भया के गांव में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बना है। यहां डॉक्टर नहीं है।


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