आखिर क्यों झगड़ते हैं अमेरिका-ईरान ; तनाव बढ़ा तो सिर्फ तेल नहीं, खतरे में होंगे 80 लाख भारतीय

भास्कर न्यूज.अमेरिका और ईरान के बीच चल रहा दशकों पुराना विवाद फिर गरमा गया है। गुरुवार को इराक में अमेरिका ने एयर स्ट्राइक के जरिए शीर्ष ईरानी कमांडर कासिम सुलेमानी को मार गिराया है। इस घटना के बाद खाड़ी क्षेत्र में तनाव गहरा गया है। असर पूरी दुनिया सहित भारत पर भी पड़ेगा। तात्कालिक असर के रूप में शुक्रवार को हमले के बाद ही क्रूड के दाम चार फीसदी बढ़ गए। भारत के लिए ईरान कई मायनों में महत्वपूर्ण है। चीन के बाद भारत ही है, जो ईरान से सर्वाधिक तेल खरीदता है। इतना ही नहीं, पश्चिम एशिया में 80 लाख भारतीय काम कर रहे हैं। इनमें अधिकतर खाड़ी देशों में है। युद्ध जैसी आपात स्थिति आती है तो इन लोगों को इस क्षेत्र से वापस लाना बड़ी चुनौती होगी। हालांकि, सैन्य क्षमता में ईरान...अमेरिका के मुकाबले कहीं नहीं ठहरता। इसके बावजूद अगर हथियारों से संघर्ष शुरू होता है तो खाड़ी देशों में फिर से अफरा-तफरी मच सकती है। अमेरिका पहले ही अपने नागरिकों से इराक छोड़ने के लिए कह चुका है। इतना ही नहीं, ब्रिटेन ने भी मिडिल ईस्ट में अपने सैन्य अड्‌डों की सुरक्षा बढ़ा दी है।


अमेरिका के इस हमले को विशेषज्ञ अमेरिकी चुनाव से जोड़कर भी देख रहे हैं। अमेरिका में इस साल चुनाव भी है। हालांकि, मौजूदा राष्ट्रपति ट्रंप का रवैया हमेशा ईरान के खिलाफ रहा है। ओबामा प्रशासन द्वारा किए गए परमाणु समझौते को उन्होंने सत्ता में आते ही तोड़ दिया था। दरअसल, अमेरिका और ईरान के संबंध कभी भी मधुर नहीं रहे हैं। दशकों से अलग-अलग घटनाओं की वजह से दोनों देशों के संबंध खराब रहे हैं। अगर अमेरिका और ईरान में युद्ध होता है तो एशियाई देशों में सबसे अधिक असर भारत पर पड़ेगा। भारत की जियो स्ट्रैटजिक और जियो पॉलिटिकल स्थिति बिगडे़गी। कारण भारत के दाेनों ही देशों के साथ अच्छे संबंध है। राजनीतिक रूप से ईरान भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। ऐसे में उसके किसी एक राष्ट्र के साथ खड़े होने में दूसरे के साथ बुराई का खामियाजा भुगतना होगा। युद्ध के और बढ़ने पर चीन और रूस जैसी महाशक्तियों के भी पक्ष और विपक्ष में आने की संभावनाएं बढ़ेंगी जो परिस्थितियों को भयावह रूप देंगी।

1. अमेरिका और ईरान का ताजा विवाद क्या है?
अमेरिका ने शुक्रवार को एक हवाई हमले में ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड्स के शक्तिशाली कमांडर जनरल कासिम सुलेमानी को मार गिराया। हमला बगदाद के इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर हुआ। सुलेमानी को ईरान के क्षेत्रीय सुरक्षा हथियारों का रचयिता कहा जाता था। अमेरिका के इस कदम से दोनों देशों के साथ ही खाड़ी क्षेत्र में तनाव काफी बढ़ गया है।

2. भारत पर क्या असर पड़ेगा? तेल महंगा होगा
चीन के बाद भारत ही है, जो ईरान से सबसे अधिक कच्चा तेल खरीदता है। भारत अपनी जरूरतों का 38 प्रतिशत तेल सऊदी अरब और ईरान से खरीदता है। अगर यह संकट बढ़ता है तो ईरान अपने इलाके से गुजरने वाले तेज के जहाजों को रोक सकता है असर यह होगा कि दुनिया भर में कच्चे तेल की कमी हो जाएगी और दाम आसमान छूने लगेंगे।

नागरिक खतरे में होंगे
पूरी दुनिया में ईरान के बाद सबसे अधिक शिया मुसलमान भारत में रहते हैं। दोनों देशों के संबंध मधुर हैं। लेकिन युद्ध जैसी स्थिति आती है तो नागरिक सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे। पश्चिम एशिया में 80 लाख भारतीय रहते हैं/काम करते हैं। युद्ध इन्हें संकट में डाल सकता है। जैसा कि खाड़ी युद्ध के दौरान हुआ था। भारत को तब 1.10 लाख भारतीयों को एयरलिफ्ट कर स्वदेश लाना पड़ा था।

3. चार बड़े घटनाक्रमों से समझिए...आिखर ये दोनों देश झगड़ते क्यों रहते हैं?

1953 - तख्तापलट : यह वो वर्ष था, जब दुश्मनी की शुरुआत हुई। अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने ब्रिटेन के साथ मिलकर ईरान में तख्तापलट करवाया। निर्वाचित प्रधानमंत्री मोहम्मद मोसाद्दिक को हटाकर ईरान के शाह रजा पहलवी के हाथ में सत्ता दे दी गई। इसकी मुख्य वजह था-तेल। मोसाद्दिक तेल के उद्योग का राष्ट्रीयकरण करना चाहते थे।

1979 - ईरानी क्रांति : ईरान में एक नया नेता उभरा-आयतोल्लाह रुहोल्लाह ख़ुमैनी। आयतोल्लाह पश्चिमीकरण और अमेरिका पर ईरान की निर्भरता के सख्त खिलाफ थे। शाह पहलवी उनके निशाने पर थे। ख़ुमैनी के नेतृत्व में ईरान में असंतोष उपजने लगा। शाह को ईरान छोड़ना पड़ा। 1 फरवरी 1979 को ख़ुमैनी निर्वासन से लौट आए।

1979-81 - दूतावास संकट :ईरान और अमेरिका के राजनयिक संबंध खत्म हो चुके थे। तेहरान में ईरानी छात्रों ने अमेरिकी दूतावास को अपने कब्जे में ले लिया। 52 अमेरिकी नागरिकों को 444 दिनों तक बंधक बनाकर रखा गया। 2012 में इसविषय पर हॉलीवुड फिल्म-आर्गो आई। इसी बीच इराक ने अमेरिका की मदद से ईरान पर हमला कर दिया। युद्ध आठ साल चला।

2015 - परमाणु समझौता : ओबामा के अमेरिकी राष्ट्रपति रहते समय दोनों देशों के संबंध थोड़ा सुधरने शुरू हुए। ईरान के साथ परमाणु समझौता हुआ, जिसमें ईरान ने परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने की बात की। इसके बदले उस पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों में थोड़ी ढील दी गई थी। लेकिन ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने के बाद यह समझौता रद्द कर दिया। दुश्मनी फिर शुरू हो गई।

4. हमले का अमेरिकी चुनाव से संबंध है?

  • युद्ध हमेशा से अमेरिकी चुनाव पर असर डालता रहा है। 2003 में इराक पर हमला और 2004 के राष्ट्रपति चुनाव को लेकर एक अध्ययन सामने आया था। मिशन एकॉम्पिशल्ड : द वॉरटाइम इलेक्शन ऑफ 2004। 2004 में अमेरिका में चुनाव तय थे। 2003 में बुश ने इराक पर हमले का फैसला किया। शोधकर्ताओं के अनुसार- बुश ने यह चुनाव ‘युद्ध के कारण’ जीता था।
  • अमेरिका ने बगदाद पर हवाई हमला उस वक्त किया है, जब अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव की तैयारियां जोरों पर हैं। अमेरिका में इस साल चुनाव हैं। बता दें, डोनाल्ड ट्रंप ने 29 नवंबर 2011 को ट्वीट कर कहा था कि तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा फिर चुनाव जीतने के लिए ईरान के साथ युद्ध शुरू कर सकते हैं।

5. अब तक क्या असर हुआ?

1. बगदाद में अमेरिकी दूतावास ने अपने नागरिकों से तत्काल इराक छोड़ देने को कहा है।
2. ब्रिटेन ने मिडिल ईस्ट में अपने सैन्य अड्डों की सुरक्षा भी बढ़ा दी है।
3. इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ग्रीस का दौरा बीच में छोड़कर अपने देश लौट आए हैं।
4. क्रूड के दाम 4 प्रतिशत बढ़ गए हैं।

6. दोनों देशों की सैन्य क्षमता

अमेरिकी ताकत ईरानी ताकत
सैन्य क्षमता 12.81 लाख 5.23 लाख
थल शक्ति (टैंक, व्हीकल्स, तोपें) 48422--- 8577
जल शक्ति (जहॉज, पनडब्बियां आदि) 415--398
वायु शक्ति (एयर क्रॉफ्ट, हेलीकॉप्टर्स) 10170--512
मिसाइल्स 07 12
रक्षा बजट 716 बिलियन डॉलर 6.3 बिलियन डॉलर


भास्कर एक्सपर्ट डॉ. वेदप्रताप वैदिक खुद को महान दिखाने के लिए ट्रंप ने की कार्रवाई
ईरानी सेनापति कासिम सुलेमानी की हत्या को डोनाल्ड ट्रंप कितना ही जरूरी और सही ठहराएं, लेकिन यह काम एक अघोषित युद्ध की तरह ही है। सुलेमानी की तुलना ओसामा बिन लादेन या बगदादी से नहीं की जा सकती। उनकी हत्या इसलिए की गई कि वे बगदाद में थे और कहा गया कि उन्हीं के उकसावे पर बगदाद के अमेरिकी राजदूतावास को घेर लिया गया था, जैसा कि तेहरान में सातवें दशक में घेरा गया था। 27 दिसंबर को एक राकेट हमले में अमेरिकी ठेकेदार की मौत हो गई थी। कुछ सप्ताह पहले सऊदी अरब के एक तेल-क्षेत्र पर भी जबर्दस्त हमला हुआ था। उसके लिए ईरान को गुनहगार ठहराया गया था।
इन सब कारणों के बावजूद इस अमेरिकी कार्रवाई को अंतरराष्ट्रीय कानून की नजर में ठीक नहीं ठहराया जा सकता। ट्रंप को चुनाव जीतना है। यह काम उन्हें अमेरिकियों की नजर में महानायक बना देगा लेकिन चीन, रूस और फ्रांस जैसे सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों ने गहरी चिंता व्यक्त की है। माना जा रहा है कि ईरान इसका बदला लिए बिना नहीं रहेगा। हो सकता है कि पश्चिम एशिया छोटे-मोटे युद्ध की चपेट में आ जाए। इस घटना से भारत की चिंता बढ़ गई है, क्योंकि अमेरिका और ईरान, दोनों से भारत के संबंध अच्छे हैं।
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दुश्मनी की यह ऐतिहासिक तस्वीर: इस्लामिक क्रांति के बाद ईरान में अमेरिकी दूतावास पर यहां काम कर रहे लोगों को बंधक बना लिया गया।
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source /national/news/bhaskar-360-6-points-the-enmity-between-iran-and-america-standing-at-the-mouth-of-war-126434586.html

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