जब खेलना शुरू किया तो रग्बी के बारे में कुछ भी पता नहीं था, बस दौड़ना आता था; दौड़ते-दौड़ते यहां तक पहुंच गई : स्वीटी कुमारी
पटना. बिहार के एक छोटे से कस्बे से निकलकर रग्बी में अंतरराष्ट्रीय स्तर की पहचान बनाने वाली स्वीटी कुमारी ने इंटरनेशनल यंग प्लेयर ऑफ द ईयर 2019 का अवॉर्ड जीता है। खास बात यह है कि स्वीटी ने जब रग्बी खेलना शुरू किया था तो उन्हें इस खेल के बारे में कुछ पता ही नहीं था। बस दौड़ना आता था। स्वीटी ने दौड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वक्त के साथ रग्बी के तौर-तरीके सीखे और 2019 में यंग प्लेयर ऑफ द ईयर का खिताब अपने नाम कर लिया।
स्वीटी के संघर्ष की कहानी उन्हीं की जुबानी-
कोच ने कहा था तेज दौड़ना आता है तो रग्बी सीख जाओगी
‘‘मैं जब नौवीं क्लास में थी,तब रग्बी खेलना शुरू किया था। शुरू में इस खेल के बारे में कुछ पता नहीं था। क्या खेल रही हूं, यह भी मुझे पता ही नहीं था। मेरे कोच ने कहा कि तेज दौड़ना आता है तो रग्बी सीख जाओगी। कोच की इसी बात को मैंने गुरुमंत्र माना और फिर पीछे पलटकर नहीं देखा। मैं अभी बाढ़ के एएनएस कॉलेज से ग्रेजुएशन भी कर रही हूं।’’
पढ़ाई में ज्यादा अच्छी नहीं थी, भाई को देख स्पोर्ट्स में आई
‘‘सात भाई बहनों में मैं पांचवें नंबर पर हूं। एक बड़ा भाई एथलीट था। मैं पढ़ाई में ज्यादा अच्छी नहीं थी, इसी वजह से स्पोर्ट्स में जाने की इच्छा हुई। भाई को देख मैंने भी एथलेटिक्स ज्वाइन किया। 2014 में स्कूल गेम्स की एक मीटिंग में हिस्सा लेने के लिए पटना आई थी। तब रग्बी के सेक्रेटरीपंकज कुमार ने मेरी रनिंग देख मुझेखेलने की सलाह दी। तब मैं नौवीं क्लास में थी। कोच से मैंने पूछा तो उन्होंने बताया कि दौड़ना आता है तो रग्बी सीख जाओगी। बस बॉल को पीछे पास करना होता है और आगे भागना होता है। शुरू में तो रुल्स नहीं समझ आ रहे थे, सिर्फ खेल रही थी। प्रैक्टिस करते-करते पता ही नहीं चला कि कब रग्बी सीख गई।’’
दो साल तक ट्रेन में सफर करके पटना कोचिंग लेने आती थी
‘‘मैं करीब दो साल तक ट्रेन में एक घंटे का सफर कर पटना आती थी और रग्बी की कोचिंग लेती थी। ज्यादातर वक्त कैंप में ही बीतता था। 20 से 25 दिनों का कैंप लगता था। उस वक्त बाढ़ में रग्बी खेलने की सुविधा नहीं थी। 2016 में बाढ़ में रग्बी खेलने की सुविधा हो गई और आज करीब 70 बच्चे यहां ट्रेनिंग ले रहे हैं। भारतीय रग्बी टीम के कोच लुत्विक मुझे स्कोरिंग मशीन के नाम से बुलाते हैं। उन्होंने मुझे बहुतसिखाया।’’
कोच ने कहा था-हाइट और वेट से कुछ नहीं होता
‘‘2017 में रग्बी खेलनेपहली बार विदेश गई थी। दुबई में यूथ ओलिंपिक क्वालिफाई गेम खेलने का मौका मिला और पहला मैच खेलकर लगा जैसे फ्रेंडशिप मैच खेल रहे हों। पहलेमैच के बाद सारा डर निकल गया। सबसे ज्यादा दिक्कत सिंगापुर के खिलाफ खेलने में हुई थी। वहां की लड़कियों की हाइट और वेट ज्यादा था। कोच ने बताया कि लंबाई और वजन से कुछ नहीं होता। वही टैकलिंग करो,जैसे पहले करती आई हो। हमने वही रणनीति अपनाई और सफलता मिली। मैं सिंगापुर, ब्रुनेई, फिलीपींस, इंडोनेशिया और लाओस में रग्बी खेलने जा चुकी हूं।’’
रग्बी कीओपनिंग सेरेमनी में गई, नजारा ऐसा जैसे इंडिया ने क्रिकेट वर्ल्ड कप जीता हो
‘‘मुझे पिछले साल सितंबर में एशिया रग्बी (मेंस) की ओपनिंग सेरेमनी में जापान बुलाया गया था। वहां सड़कों पर ऐसा नजारा था मानो इंडिया ने क्रिकेटवर्ल्ड कप जीता हो। रग्बी के लिए वहां ठीक वैसी ही दीवानगी थी जैसे भारत में क्रिकेट के लिए लोगों में रहती है। इतने लोग दिख रहे थे कि मानो मेले से भीड़ उठाकर सड़क पर रख दी गई हो। मुझे एशिया रग्बी अंडर 18 गर्ल्स चैंपियनशिप भुवनेश्वर, विमेंस सेवेंस ट्राफी ब्रुनेईऔर एशिया रग्बी सेवेंस ट्राफी जकार्ता इंडोनेशिया 2019 में बेस्ट स्कोरर का अवॉर्ड मिल चुका है। एशिया रग्बी सेवेंस ट्राफी जकार्ता इंडोनेशिया 2019 में बेस्ट प्लेयर के अवॉर्ड भी जीता है।’’
स्वीटी की मां बोलीं- इसके पापा कहते हैं बेटीकी लाइफ सेट है
स्वीटी की इस सफलता से मां-बाप उत्साहित हैं। स्वीटी की मां बताती हैं जब ये रग्बी खेलने गई तब पता ही नहीं था कि ये क्या खेलने जा रही है। स्वीटी को हमने कभी नहीं रोका। उसके सपने पर हमने भरोसा किया। जब उसे इंटरनेशनल यंग प्लेयर का अवॉर्ड मिला है। वहीं,पिता दूसरे बच्चों को कह रहे हैं कि स्वीटी की लाइफ सेट है, तुम सब अपने करियर में जल्द सेटल हो जाओ।
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source https://www.bhaskar.com/bihar/patna/news/when-i-started-playing-nothing-was-known-about-rugby-just-running-reached-here-on-the-run-dainik-bhaskar-interview-with-rugby-international-young-player-of-year-sweety-kumari-126442673.html
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