दुनिया के दो शीर्ष डॉक्टर बता रहे हैं कोरोना हमला कैसे करता है, खतरा कब तक बना रहेगा?

सिडनी/न्यूयॉर्क (साथ में विशेष इनपुट: द न्यूयॉर्क टाइम्स से अनुबंध के तहत).दुनियाभर में कोरोनावायरस का खतरा लगातार बढ़ रहा है। लोगों के मन में कई तरह के भय और भ्रम हैं। मन में कई तरह के सवाल हैं। ऐसे में हमने डॉ. जॉन और डॉ. विलियम से समझा कि आखिर इस परेशानी से हमें कब तक छुटकारा मिल सकता है। साथ ही यह कैसे हमारे शरीर को बीमार करता है, इसका हमारे शरीर के अंगों पर कैसा प्रभाव पड़ता है। ये दोनों ही इस समय कोरोनावायरस के संक्रमण और इसके असर को समझाने वाले दुनिया के प्रमुख विशेषज्ञ हैं।

दुनिया के सामने बड़ा सवाल है कि आखिर कोरोना वायरस से संक्रमण के नए मामले आना कब रुकेंगे? भास्कर ने इसका जवाब ऑस्ट्रेलिया में डॉक्टरों के बड़े संगठन रॉयल ऑस्ट्रेलेशन कॉलेज ऑफ फिजिशियन के प्रेसिडेंट इलेक्ट और मशहूर श्वास रोग विशेषज्ञ डॉ. जॉन विल्सन से जानने की कोशिश की। डॉ. विल्सन बताते हैं कि रोज कितने नए केस सामने आ रहे हैं,यह बात उस देश की स्वास्थ्य सेवाओं और जिम्मेदारों के प्रयास पर निर्भर करती हैं। मौजूदा आंकड़ों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि जून माह के शुरुआत में दुनियाभर में नए केस सामने आने की संख्या में कमी आनी शुरू हो सकती है। डॉ. विल्सन कहते हैं कि अच्छी बात यह है कि वायरस की संरचना को वैज्ञानिकों ने समझ लिया है, इसीलिए इसके टीके बनाने के शुरुआती परिणाम सकारात्मक रहे हैं।

संक्रामक बीमारियों के विशेषज्ञ और अमेरिका की वैंडरबिल्ट यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ऑफ मेडिसिन डॉ. विलियम शैफनर कहते हैं कि यह वायरस खतरनाक है,क्योंकि इसका जेनेटिक मटैरियल कोशिकाओं के मेटाबॉलिज्म को हाइजैक करता है। वोकोशिकाओं को संक्रमित करके खुद की संख्या बढ़ाते हैं। डॉ. शैफनर कहते हैं कि संक्रमण की अफवाहों को लेकर परेशान नहीं होना है। अगर सूखी खांसी, बुखार जैसे लक्षण नहीं हैं तो डरकर जांच कराने की जरूरत नहीं है।

8 चरणों में कोरोना का हमला, कैसे हर एक सांस चुनौती बन जाती है?

1.किसी संक्रमित व्यक्ति के खांसने या छींकने से छोटी बूंदों के माध्यम से वायरस दूसरे व्यक्ति तक पहुंचता है। सामान्य व्यक्ति की नाक, मुंह या आंखों से वायरस उसके शरीर में पहुंच जाता है। यहां से वायरस सीधे नैसल पैसेज (नाक का रास्ता) के पीछे और गले के पीछे की म्यूकस मेम्ब्रेन में पहुंचता है।

2.यहां वायरस खुद को कोशिकाओं से जोड़ लेते हैं। कोरोना के कण नुकीले होते हैं। इनकी सतह से प्रोटीन निकला होता है, जो कोशिकाओं की झिल्ली से चिपक जाता है।

3. वायरस जेनेटिक मटैरियल कोशिका में प्रवेश कर जाता है। कोशिकाएं अब सामान्य तरह से काम नहीं कर पातीं। उसके मेटाबॉलिज्म पर अतिक्रमण हो जाता है। संक्रमित कोशिकाओं की मदद से वायरस की संख्या बढ़ने लगती है। ज्यादा कोशिकाएं संक्रमित होने लगती हैं। शरीर कोरोना फैक्ट्री बन जाता है।

4.यहीं से संक्रमित व्यक्ति का गला खराब होता है और उसे सूखी खांसी शुरू हो जाती है। यह कोरोना से संक्रमित व्यक्ति का सबसे पहला लक्षण हैं। यह कई बार हल्के होते हैं।

5.अब वायरस श्वास नली में प्रवेश करता है। यहां से फेफड़े की चिकनी झिल्ली में सूजन शुरू हो जाती है। इस स्थिति में आते-आते कई बार मरीज को दर्द होने लगता है। उसे अपने लक्षण ज्यादा स्पष्ट पता लगते हैं।

6. फेफड़े की थैली (जिसमें हवा रहती है) नष्ट होने लगती है। इससे फेफड़ों को काम करने में परेशानी शुरू हो जाती है। रक्त में ऑक्सीजन की कमी होने लगती है। रक्त से कार्बन डाइऑक्साइड निकालने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है।

7.सूजन बढ़ने, ऑक्सीजन का प्रवाह कम होने से फेफड़े के हिस्से में द्रव, पस और मृत कोशिकाएं जमा होने लगती हैं। इससे निमोनिया का खतरा बढ़ जाता है।

8. कई मरीजों में खतरा इतना बढ़ता है कि वेंटिलेटर की जरूरत पड़ती है। एक्यूट रेस्पायरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम हो जाता है। इसमें फेफड़ों में इतना द्रव जमा हो जाता है कि सांस लेना नामुमकिन हो जाता है। मरीज की मौत हो जाती है।



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डॉ. विलियम शैफनर और डॉ. जॉन विल्सन।


source https://www.bhaskar.com/national/news/coronavirus-in-india-total-case-live-and-updates-127024538.html

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