आपदा प्रबंधन का तजुर्बा रखने वाले डॉ वीके सिंह ने कहा- हम चमकी और जापानी बुखार को मॉक ड्रिल के तौर लेते तो कोरोना से बेहतर लड़ पाते
आपदा प्रबंधन कभी भी किसी सरकार और प्रशासन का प्राथमिक काम नहीं रहा है। मॉकड्रिल को गंभीरता से नहीं लिया गया। रेलवे कोच में अब वेंटिलेटर बनाए जा रहे हैं जबकि 12 साल पहले ही आपदा प्रबंधन की पहली गाइडलाइन में हमने यह सुझाव दिया था कि ट्रेन एंबुलेंस बनाई जाए। कोराेना का कहर जल्द गांव व कस्बों में पहुंचसकता है। इससे निपटने के लिए हमें कंटेनेराइज्ड अस्पताल तुरंत बनाने चाहिए, जो ईजी टू मूव हैं। यह सुझाव दिया है सर्जन (रियर एडमिरल) डॉ. विजय कुमार सिंह ने। आपदा प्रबंधन का खासा तजुर्बा रखने वाले डॉ. वीके सिंह ने बताया कि हालात को देखते हुए क्या कदम उठाने चाहिए...
सवाल- आपदा प्रबंधन की पहली गाइड लाइन में आपने सरकार को क्या सुझाव दिए थे?
जवाब- हमने नेचुरल डिजास्टर, बॉयोलॉजिकल डिजास्ट, केमिकल डिजास्टर, न्यूक्लियर डिजास्टर जैसी आपदाओं से निपटने के लिए कई सुझाव दिए थे। ये भी कहा था कि समय-समय पर मॉक ड्रिल होती रहनी चाहिए। कुछ चीजें अपनाई गई, कुछ नहीं। क्योंकि हेल्थ राज्यों का विषय है। ज्यादातर चीजें लागू करने की जिम्मेदारी इनकी ही होती है।
सवाल- बायोलॉजिकल डिजास्टर से निपटने के लिए अब तक कितने मॉक ड्रिल हो चुके हैं?
जवाब- मेरी जानकारी में अभी तक एक भी मॉक ड्रिल बायोलॉजिकल डिजास्टर से संबंधित नहीं हुई है। ज्यादातर मॉकड्रिल नेचुरल डिजास्टर से निपटने से संबंधित हुई है। इनमें ज्यादातर मॉक ड्रिल फील्ड पर हुई। टेबल पर बैठकर ब्रेन स्टॉर्मिंग न के बराबर होती है। गाइडलाइन के हिसाब से टेबल और फील्ड दोनों पर मॉक ड्रिल होनी चाहिए। मॉकड्रिल से हमें अपनी खामियों के बारे में पता चलता है।
सवाल- कोरोना महामारी को आप कैसे देखते हैं?
जवाब- हमारे पास इससे लड़ने के लिए पूरा लीगल फ्रेम है। राष्ट्रीय स्तर पर एनडीआरएफ, राज्य स्तर पर एसडीएमए और जिला स्तर पर इसकी ईकाई रहती है। जिनके अपने कानून हैं। कोराेना महामारी जैसी आपदा से इन्हीं कानून से निपट भी रहे हैं। लेकिन संसाधनों और जमीनी तैयारी हमारी कमजोर पड़ रही है। हमें इस पर पहले से ध्यान देना चाहिए था।
सवाल- आजाद भारत के इतिहास मेें पहली बार आई ऐसी आपदा के लिए किस तरह तैयार होते?
जवाब- 2018 में यूपी में जापानी बुखार से सैकड़ों बच्चे बीमार हुए, उनमें से कई मर भी गए। वहीं जून 2019 में बिहार में चमकी बुखार आया, इसमें भी कई बच्चे बीमार हुए। उस समय व्यस्थाओं में कई खामियां रही। ये घटनाएं हमारे लिए वार्निंग अलार्म थीं। इनकी खामियों से हमें सीखना चाहिए था। केन्द्र और राज्य इन दोनों घटनाओं को ये सोच कर मॉक ड्रिल पर लेते कि अगर ये पूरे देश में फैल जाए तो हमारी तैयारी क्या होगी। लेकिन इसे नजरअंदाज किया गया। स्वाईन फ्लू के मौके पर हमने कई पोल्ट्रीफॉर्म बंद करवा दिए, लेकिन यह बहुत निर्दयी प्रयास था। इसमें सही और संक्रमित चिकन को मार दिया गया। पोल्ट्रीफॉर्म बंद हो गए। इससे रोजगार की अन्य समस्या पैदा हो गई।
सवाल- किस तरह जमीनी तैयारी होनी चाहिए थी, जिससे हम कोराेना से निपट पाते?
जवाब- उदाहरण के तौर पर आज हम ट्रेन में वेंटिलेटर बना रहे हैं, हमने 2007 में ही सुझाव दिया था कि रेलवे में आपदा से निपटने के लिए बहुत क्षमता है, जमीनी तौर पर इसे विकसित किया जाना चाहिए। उसी समय एंबुलेंस ट्रेन थीं, जो युद्ध के लिए तैयार किया गया था। इसे और बढ़ाया जाना चाहिए था।
सवाल- अभी के हालात को नियंत्रित करने के लिए क्या किया जाना चाहिए?
जवाब- सरकार ने लॉकडाउन करके अच्छा काम किया। लेकिन इसे सख्ती से लागू किया जाना चाहिए था। इसके अलावा हमें ज्यादा से ज्यादा टेस्ट करने होंगे, जैसा कि साउथ कोरिया ने किया। हमें बढ़ते केस के साथ चरणबद्ध तरीके से तैयारी शुरू कर देनी चाहिए। हमें कंटेनेराइज्ड अस्पताल तुरंत बनाने होंगे। जिस तरह से यह बीमारी बढ़ रही है और मजदूरों का पलायन हुआ है, उसे देखते हुए लगता है कि यह गांव व कस्बों में जल्दी ही पहुंच सकती है। अगर ऐसा हुआ तो वहां कंटेरेनेराइज्ड अस्पताल तुंरत पहुंचाए जा सकते हैं। इस तरह शहर पर बोझ कम पड़ेगा।
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