सर्वे के मुताबिक: कोरोना इफेक्ट से देश में 20% मानसिक रोगी बढ़े; डब्ल्यूएचओ ने कहा- क्वारैंटाइन में भी ऐसे रहेंगे मेंटली फिट
कोरोनावायरस ने दुनियाभर में डर और चिंता का माहौल बना दिया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) भी संकट की इस घड़ी में लोगों से अन्य सावधानियों के साथ अपने मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखने को कह रहा है। कोरोनावायरस डर, चिंता और अवसाद तक का कारण बन सकता है। विभिन्न अध्ययन बताते हैं कि मरीज, क्वारेैंटाइन में या आइसोलेशन में रह रहे व्यक्ति और यहां तक कि इलाज कर रहे व्यक्ति की मानसिक सेहत पर इससे असर पड़ सकता है। कोरोना का मानसिक रोगियों की संख्या पर असर दिखने भी लगा है।
देश में मनोचिकित्सकों के सबसे बड़े एसोसिएशन इंडियन साइकियाट्रिक सोसायटी के सर्वे के मुताबिक, कोरोनावायरस के आने के बाद देश में मानसिक रोगों से पीड़ित मरीजों की संख्या 15 से 20 प्रतिशततक बढ़ गई है। सर्वे बताता है कि मरीजों की यह संख्या एक हफ्ते के अंदर ही बढ़ी है और वैश्विक महामारी इसका एक कारण हो सकता है। लोगों में लॉकडाउन के चलते बिजनेस, नौकरी, कमाई, बचत और यहां तक कि मूलभूत संसाधन खोने तक डर भी इसका कारण माना जा रहा है।
हर पांच में से एक भारतीय किसी न किसी मानसिक रोग का शिकार
इसी साल जनवरी में इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च ने भी बताया था कि हर पांच में से एक भारतीय किसी न किसी मानसिक रोग का शिकार है। चिंता की बात यह है कि कोरोना के बाद अगर मानसिक रोगियों की संख्या बढ़ती है, तो इसके लिए जागरूकता और सुविधाएं, दोनों की ही कमी को जिम्मेदार माना जा सकताहै। दुनियाभर में सभी स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं में केवल 1 प्रतिशत हेल्थ वर्कर्स ही मेंटल हेल्थ के इलाज से जुड़े हुए हैं। भारत में इसका आंकड़ा और भी कम है। कोरोनाके कारण कई लोग क्वारैंटाइन, आइसोलेशन में या फिर अकेले रहने को मजबूर हैं। ऐसे में मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना और भी जरूरी हो जाता है। जानिए देश मे मेंटल हेल्थ ही स्थिति, क्वारैंटाइन से मानसिक सेहत पर असर, और इससे बचाव के तरीकों के बारे में सबकुछ।
क्वारैंटाइन का दिमागी सेहत पर क्या असर हो सकता है?
- किंग्स कॉलेज लंदन ने हाल ही क्वारैंटाइन के असर से जुड़े 24 पेपर्स का रिव्यू किया है। मेडिकल जर्नल लैंसेट में प्रकाशित इस रिव्यू के मुताबिक विभिन्न अध्ययन बताते हैं कि क्वारैंटाइन में रहने वाले लोगों में संक्रमण का डर, चिढ़चिढ़ापन, बोरियत, जानकारी की कमी या सामान की कमी की चिंता जैसी दिक्कतें सामने आती हैं।
- अध्ययनों के मुताबिक अन्य मनोवैज्ञानिक लक्षणों में भावनात्मक अस्थिरता, अवसाद, तनाव, उदासी, चिंता, पैनिक (घबराहट), नींद न आना, गुस्सा भी शामिल है।
- क्वारैंटाइन में रह चुके लोगों पर हुए एक सर्वे ने यह भी बताया कि सबसे ज्यादा उदासी (73 फीसदी) और चिढ़चिढ़ापन (57 फीसदी) की समस्या देखी गई है। एक्सपर्ट एक जगह सीमित रहने, रोज का रूटीन के खराब होने और सामाजिक संपर्क के कम होने को कारण मानते हैं। अध्ययन यह भी बताते हैं कि माता-पिता की तुलना में बच्चों में क्वारैंटाइन की वजह से 4 गुना ज्यादा तनाव होता है।
क्या क्वारैंटाइन के बाद भी बना रह सकता है दिमाग पर असर?
- क्वारैंटाइन की वजह से आए मनोवैज्ञानिक बदलावों का असर कुछ समय से लेकर लंबे समय तक रह सकता है। लैंसेट के रिव्यू का एक अध्ययन बताता है कि सार्स बीमारी के फैलने के दौरान क्वारैंटाइन में गए लोग कुछ हफ्ते बाद तक भी इस मनोस्थिति से नहीं निकल पाए। जैसे 26 फीसदी लोग भीड़ वाली बंद जगहों (समारोह आदि) में नहीं गए और 21 फीसदी किसी सार्वजनिक स्थान पर नहीं गए।
- चीन में हुए एक अध्ययन ने भी बताया कि अस्पताल कर्मचारियों पर क्वारैंटाइन की वजह से हुए तनाव का असर तीन साल बाद तक भी देखा गया। किंग्स कॉलेज के शोधकर्ताओं के मुताबिक लोगों से उनकी आजादी छिनने का असर उनके दिमाग पर लंबे समय तक रह सकता है। हालांकि शोध इसका एक और पहलू भी बताते हैं। सार्स फैलने के दौरान ही हुआ एक सर्वे बताता है कि जहां लोगों ने डर, घबराहट, ग्लानि और उदासी जैसी भावनाएं महसूस की वहीं क्वारेंटाइन में रहे पांच फीसदी लोगों ने खुशी और 4 फीसदी ने राहत की भावना भी महसूस की।
कैसे पहचानें कि कोरोना की वजह से एंग्जायटी और पैनिक है
विभिन्न एक्सपर्ट्स के मुताबिक ऐसी महामारी की स्थिति में लोगों को अनिश्चितता महसूस होती रहती है। अकेलापन इन बातों का बढ़ा देता है। यही विचार और भावनाएं एंग्जायटी डिसऑर्डर में बदलने लगती है। कोरोना वायरस के कारण आपको एंग्जायटी डिसऑर्डर और पैनिक अटैक तो नहीं हो रहे, इसकी जांच आप इन लक्षणों को देखकर कर सकते हैं:
- बार-बार तथ्य और आंकड़े जांचते रहते हैं
- नींद नहीं आती, सोचते रहते हैं कि कुछ बुरा हो सकता है
- बार-बार बीते दिनों को याद करते हैं
- लगभग हर चीज को लेकर ग्लानि होती है
- भूख सताती रहती है और एक साथ बहुत सारा खाना खाते हैं
- कंपकपी होती है और किसी चीज में ध्यान नहीं लगता है
क्वारैंटाइन के दौरान कैसा महसूस कर सकते हैं आप
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ये सुझाव आपके काम आ सकते हैं
अच्छी बात यह है कि समय के साथ मानसिक रोगों के कुछ लक्षण कम भी हो सकते हैं। उदाहरण के लिए लैंसेट के मुताबिक क्वारैंटाइन में रहे लोगों का सर्वे बताता है कि 7% में एंग्जायटी और 17% में गुस्से के लक्षण देखे गए, लेकिन 4-6 महीने में ये लक्षण घटकर क्रमश: 3% और 6% तक हो गए। डब्ल्यूएचओ ने लोगों को मानसिक रूप से स्वस्थ के कुछ टिप्स दिए हैं:
1. इस दौरान दु:ख, तनाव, भ्रम, डर और गुस्सा महसूस करना सामान्य है। जिनपर विश्वास करते हैं, उनसे बात करने से मदद मिल सकती है। दोस्तों और परिवार के संपर्क में रहें।
2. हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाएं। अच्छी डाइट, पर्याप्त नींद और रोजाना एक्सरसाइज बहुत जरूरी है।
3. स्मोकिंग, शराब या अन्य ड्रग्स को सहारा न बनाएं।
4. अगर भावनात्मक उथल-पुथल से जूझ रहे हैं तो किसी स्वास्थ्य कार्यकर्ता या काउंसलर से संपर्क करें।
5. आप अपनी उन स्किल्स का इस्तमाल करें जिन्होंने आपको जीवन में पहले भी बुरी स्थिति का सामना करने में मदद की है। इन स्किल्स से आपको महामारी वाली अभी की स्थिति में अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है।
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