50 डिग्री तापमान में पीपीई किट पहनकर पसीने और घुटन में काम करने वाले हेल्थ वर्कर्स की कहानी
राजस्थान का चूरू। यहां पारा 50 डिग्री पहुंच चुका है। दुनिया के सबसे गर्म चूरू में जब घरों में लगे कूलर-पंखे तक आग उगल रहे हैं, ऐसे में पीपीई किट पहनकर कोरोना वार्ड में काम करना चुनौती से कम नहीं।
ये चुनौती तब और बढ़ जाती है जब अस्पताल के ज्यादातर वॉर्ड में न कूलर हैं और एसी का तो सवाल भी नहीं।
जहां एक ओर चूरू के लोग गर्मी के चलते दिन में एक बार भी दरवाजा-खिड़की नहीं खोल पा रहे हैं, तब हेल्थ वर्कर्स न सिर्फ ड्यूटी करने अस्पताल जा रहे हैं बल्कि पीपीई किट पहनकर कोरोना मरीजों का इलाज भी कर रहे हैं।
बिना कूलर-एसी वाले वॉर्ड में पीपीई किट पहनकर 1 घंटे ड्यूटी
उज्जैनशिला नर्स हैं और इन दिनों चूरू के एनएनएम हॉस्टल में बने कोरोना वॉर्ड में ड्यूटी कर रही हैं। कहती हैं, पीपीई किट पहनकर चूरू में काम करना आग की भट्टी में तपने जैसा है।
शहर से बाहर एनएनएम हॉस्टल में कोरोना वार्ड बनाया है। नई बिल्डिंग है,इसलिए यहां न कूलर लग पाए हैं न एसी है। सिर्फ पंखे लगे हैं। स्टाफ रूम तक में भी कूलर नहीं है।
कहती हैं बमुश्किल 1 घंटे वार्ड के अंदर किट पहनकर रह पाते हैं। किट पहनने के के दस मिनट में ही इतना पसीना आता है कि कपड़े भीग जाते हैं।
उनका काम कोरोना मरीजों को दवा, चाय, काढ़ा देना होता है। उन्हें टेम्प्रेचर लेना होता है। इस सब में वक्त लगता है। और बिना किट पहने भीतर नहीं जा सकते।
लू से बचने को वह प्याज साथ रखती हैं। कहती हैं, पास में प्याज भी रख लेती हूं कि लू लगने से बच जाऊं।
15 मिनट पीपीई पहनने के बाद लगता है किट नहीं उतारी तो बेहोश हो जाएंगे
कोरोना मरीजों की सैम्पलिंग का काम करने वाले मुकेश कहते हैं, ‘मेरा काम फील्ड और हॉस्पिटल दोनों जगह का है। सैम्पल लेने के पहले पीपीई किट पहनना ही पड़ती है।
फील्ड में तो हम 15 मिनट से ज्यादा किट नहीं पहन पा रहे हैं। थोड़ी भी देर हुई की लगता है किट नहीं उतारी तो बेहोश हो जाएंगे।
मुकेश बताते हैं कुछ दिनों पहले तक किट पहनकर 30 मरीजों तक के सैम्पल कलेक्ट कर लेते थे लेकिन अब एक बार में 15 के ही कर पा रहे हैं।
15 मिनट के बाद किट उतारकर एक घंटे आराम करते हैं। पेट भरकर पानी पीते हैं। फिर नई किट पहनकर सैम्पलिंग करते हैं।
डॉक्टर खाने में सॉलिड चीजेंनहीं लेते क्योंकिघबराहट होती है
चूरू के मेडिकल कॉलेज में मेडिसिन के प्रोफेसर डॉक्टर एफएच गौरी कहते हैं कि, यहां 40 से 45 फीसदीआबादी मुस्लिमों की है। मैं पिछले 30 सालों से यहां हूं। हर कोई जानता है।
इसलिए कलेक्टर साहब ने फील्ड में लोगों को समझाने की जिम्मेदारी भी मुझे दे रखी है ताकि इलाज में समुदाय के लोग सहयोग करें।
तपती गर्मी के चलते सुबह 6 बजे से 8 बजे के बीच फील्ड में काम करते हैं। फिर वार्ड में पेशेंट को देखने का काम। वो भी दोपहर 2 बजे के पहले पूरा कर लेते हैं। इसके बाद इमरजेंसी केस ही देखते हैं, वरना फिर शाम के राउंड में सबको देखा जाता है।
डॉ गौरी कहते हैं, रोजे के वक्त से ही मैं खीर, शिकंजी जैसे लिक्विड से ही ड्यूटी कर रहा हूं। खाने में कुछ सॉलिड नहीं लेता क्योंकि इतनी तेजी गर्मी में जब पीपीई पहनों तो घबराहट शुरू हो जाती है। एक घंटे से ज्यादा किट भी नहीं पहनी जाती।
दूसरी रिपोर्ट - मध्यप्रदेश के बुरहानपुर से जहां पारा 47 डिग्री तक पहुंच चुका है
मास्क पहनने से पसीना मुंह तक आ जाता है इसलिए मुंह नहीं खोल पाते
मप्र के बुरहानपुर में भी पारा 47 डिग्री तक पहुंच चुका है। यहां के कोरोना वॉर्ड में ड्यूटी करने वाली शकीला कहती हैं, ट्रिपल लेयर वाला मास्क पहनने से तकलीफ थोड़ा ज्यादा होती है, लेकिन पहनना मजबूरी है।
मास्क पहनने से पसीना मुंह तक आ जाता है, इसलिए मुंह भी खोल तक नहीं सकते।
जब मरीज ज्यादा होते हैं, तब तीन-तीन घंटे तक पीपीई किट में रहना पड़ता है। शकीला 2 मई से परिवार से दूर लॉज में रह रही हैं।
जहां से दो किमी दूर हॉस्पिटल है। हर रोज पैदल आना-जाना करती हैं। बोलीं, अम्मी ने बैग में प्याज रखने का बोला था, ताकि लू न लगे। इसलिए डालकर रखा है।
तपती गर्मी और ड्यूटी के चलते शकीला ने सिर्फ चार दिन ही रोजे रखे। वो भी तब जब नाइट ड्यूटी थी। कहती हैं अच्छा खाना-पीना चल रहा है, तब भी हालत खराब हो जाती है यदि सारे रोजे रखे होते तो बेहोश ही हो जाती है।
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source https://www.bhaskar.com/dboriginal/news/churu-hottest-record-report-update-rajasthan-health-workers-wearing-personal-protective-equipment-ppe-kit-50-50-degrees-celsius-127352482.html
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