ये मर्दों की नाक न हुई, जन्मदिन का केक हो गया, जिसे शरारती बच्चा तालियों से पहले ही काट दे
घटना बिहार की है। 43 बरस की शादीशुदा औरत का 70 साल के दिव्यांग से जबरन ब्याह रचाया गया। शादी की तमाम रस्मों और ढोल-ढमाके के बीच दुल्हन का लिबास पहने औरत के बाल मुंडे गए। इस बीच बन्ना-बन्नी की जगह अश्लील गालियों का राग चल रहा था। अब शादी-ब्याह है तो वीडियोग्राफी तो होगी ही। खूब हुई और वीडियो वायरल कर दी गई।
समझ तो गए ही होंगे! ये असल में औरत की सजा थी। कसूर? उसका बालिग बेटा, सजा देने वाले परिवार की बालिग बेटी के साथ चला गया और दोनों ने शादी कर ली। लड़की के अपनी मर्जी से ब्याह रचाने पर तनफनाया परिवार बदला लेने के बहाने एक साथ कई निशाने लगा गया। शादीशुदा अधेड़ औरत की जबरन दूसरी शादी रचा दी।
अब औरत का पति जब-जब उतरे हुए बाल देखेगा, दूसरी शादी याद आ जाएगी। ऐसे में औरत की गृहस्थी तो चौपट समझो। दूसरा- शादी की वीडियो बेटे के हाथ पड़ गई तो मां की बेइज्जती का बदला वो आदतन बीवी से लेगा। और अगर ऐसा न भी हुआ तो लड़की बच तो जाएगी लेकिन वापस कभी ससुराल लौटने के सारे रास्ते बंद रहेंगे।
21 साल का हाल में भर्रायी आवाज वाला लड़का और 18 साल की ना-तजुर्बेकार लड़की अब सारी उम्र मुंबई की किसी सीली कोठरी में बिताएंगे, जैसे कई खून कर अंडरग्राउंड हो गए हों। कहीं हाथ लगे तो या तो गर्दन काट दी जाएगी या भून-भान दिए जाएंगे।
दिलचस्प बात ये कि शादी कर चुके ये बच्चे एक ही जाति से हैं। यानी गैर-बिरादरी, दलित-सवर्ण जैसा राग भी नहीं अलापा जा सकता। लेकिन तब भी लड़की-पक्ष का लावा उफन रहा है। लड़की ने अपनी मर्जी से शादी कर ली। इज्जत पर ये क्या कम बड़ा बट्टा है!
मामला यहां लड़की की मर्जी का है। वो लड़की, जो हींग की खुशबू बेतहाशा पसंद होने के बाद कभी दाल में उसका तड़का नहीं लगा सकी क्योंकि घर का कोई मर्द उससे 'एलर्जिक' है। वो लड़की, जिसके कपड़ों से लेकर मुस्कान तक इंची टेप से मापकर तय होते रहे।
वो लड़की, जिसे अपनी मर्जी से पैदा होने तक का हक नहीं, उसने सीधे उठकर अपनी मर्जी से शादी कर ली। वो भी प्रेम-विवाह। लड़की के लिए विवाह के ऐन बाद रेप तो चलता है लेकिन प्रेम के बाद विवाह बिल्कुल नहीं। काहे कि घरवालों की नाक जो कट जाती है। ये मर्दों की नाक न हुई, जन्मदिन का केक हो गया, जिसे शरारती बच्चा तालियों से पहले ही काट दे।
लव-जिहाद पर भी तलवारें भांजी जा रही हैं। कोई इसे मजहब बदलने के लिए प्रेम की साजिश बता रहा तो कोई इससे उल्टी चाल रहा। इस सबके एकदम बीचों-बीच औरत है। हाल ही में एक राजनैतिक विश्लेषक ने पूछा कि क्या औरतें गाय-बकरियां हैं जो कोई भी उन्हें फंसा सके? रिश्ते से पहले वे क्या वे कागज नहीं देखतीं?
अजी नहीं साहब! औरतें तो गाय-बकरियों से भी गई-बीती हैं। खुल्ला छोड़ो तो बकरियां कम से कम अपनी मर्जी का चारा खा सकती हैं। पड़ोसी का खेत चरने पर डंडे भले पड़ें लेकिन पहरे कोई नहीं बिठाता। रस्सी से बांधी भी जाती हैं तो थोड़ी ढील देकर कि आराम से बैठने-पसरने की आजादी रहे। बकरी-गाय का जाति-मजहब भी नहीं होता। वे या तो मादा होती हैं, या नर। जानवर हैं इसलिए मर्जी से यौन संबंधों की छूट।
जानवरों से जनानियों का क्या मुकाबला! औरतें तो अपनी देह पर गुलामी को कपड़े की तरह पहनती हैं। जरा एक सुराख हुआ कि सारी बिरादरी डोल उठती है। कपड़ों की थान की थान लपेट दी जाती है कि कहीं सुराख से फूटती रोशनी किसी को आजाद न कर दे। कहीं-कहीं लोग ज्यादा दरियादिल हैं। वे कहते हैं- अपनी मर्जी से शादी कर लो लेकिन कुछ हुआ तो रोने को मत लौटना। यानी हौसला सोखने का सारा करतब होता है।
जापान जैसा बेहद समृद्ध देश भी इस मामले में हमारा हमकदम है। वहां शाही खानदान की लड़की अगर किसी बाहरी आदमी से शादी कर ले तो उससे राजकुमारी का खिताब छिन जाता है। घर चलाने को कुछ पैसे देकर महल के कपाट मूंद लिए जाते हैं।
राजकुमार के लिए अलग कायदा है। वो चाहे जिस लड़की से शादी कर उसे महल ला सकता है। महल का मालिक किसी पुरुष को ही बनाया जाता है। इधर 41 सालों तक जापान के रॉयल परिवार में कोई नर संतान न हुई तो रोना-पीटना मच गया। महल लावारिस होने जा रहा था। खैर, जापानी कहानी कभी और। फिलहाल तो हमारे यहां ही खूब रसीले किस्से हैं।
लड़की का नैन-मटक्का, लड़के संग घर से भागना, शादी, बच्चा और फिर टूटी हुई लड़कीनुमा औरत का खत्म हो जाना। जिस घर की लड़की ने मर्जी से शादी रचाई, उसके आसपास कई किलोमीटर तक के घर अपनी दीवारें उठवा लेते हैं। मोबाइल हाथ से छीन लिए जाते हैं।
स्कूल-कॉलेज छोड़ने-लाने को एक घरेलू मर्द पक्का किया जाता है। या और भी आसान कि पढ़ाई ही छुड़वा ही जाए। सारे प्रेम आखिर पढ़ते हुए ही तो उपजते हैं। शादी की सरकारी उम्र तक पहुंचते ही दूल्हा द्वार खड़ा होता है। शादी बेमेल निकली तो लड़की की किस्मत।
इधर तरक्की-पसंद लोग चारपाइयों पर अंगड़ाई ही लिए जा रहे हैं, उधर मर्जी के चलते लड़कियों के कत्ल हो रहे हैं। कुल जमा, लड़कियों की आजादी वो स्वेटर बन गया है, जो तैयार होने से पहले ही तंग हो चुका। अब रास्ता क्या है?
बॉस, एक रास्ता तो है। क्यों न हम सब मिलकर अपने दिमागों की फफूंद का बढ़िया इलाज करवाएं। समझ लें कि शरीर का फर्क न मर्दों को बेहतर बनाता है और न औरतों को कमतर। लड़की को इस काबिल मान सकें कि वो अपने लिए ठीक फैसला लेगी।
या फिर इतना हौसला दें कि फैसला गलत होने पर भी दुनिया खत्म नहीं होती। दिल पर पत्थर रखकर ही सही। कदम तो उठाना होगा मियां साहब। वरना ज्यादा दिन नहीं, जब हमारा मुल्क भी जापान का महल हो जाएगा। वारिस के इंतजार में बुढ़ाता हुआ।
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source https://www.bhaskar.com/db-original/news/these-men-did-not-have-a-nose-became-a-birthday-cake-which-the-naughty-child-would-cut-before-the-applause-127957530.html
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