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पटना के अनीसाबाद से कुछ ही कदम की दूरी पर बल्मीचक तीन मुहान है। वहां से अंदर दूर तक सड़क जाती है। सड़क बहुत चौड़ी नहीं है, पर आबादी खूब है। यह सड़क पुनपुन नहर तक जाती है। पटना के सबसे पास का गांव इधर ही है।

हम बढ़ते गए। दीवार पर गोइठा और उस पर महिलाओं के पंजों के निशान। गाय, भैंस और बकरियां दिखने लगीं हैं। ये क्या, यहां तो सड़क ही काट दी गई है। ...ओह, तो विकास हो रहा है। नमामि गंगे का प्रोजेक्ट वर्षों से इस सड़क पर चल रहा है। बनी बनाई सड़क इसी के लिए कई जगहों पर तोड़ी गई है। अभी जहां सड़क तोड़ी गई है, उस वजह से सड़क पर काफी कम जगह बची है। नतीजा खतरा...। सत्या गैस एजेंसी से 25 मीटर उत्तर की तरफ यह सड़क काटी गई है।

इस इलाके में जल निकासी की बड़ी समस्या है। पुराने नाले भर गए हैं। आगे दीनानाथ कांति के घर के पास एक जगह पश्चिम हिस्से का पानी निकालने के लिए सड़क को काट दिया, लोगों ने। अब पश्चिम से पूरब की तरफ पानी हो-हो बह रहा है। पानी जाम हो गया था तो पश्चिम का इलाका डूब रहा था।

वहीं खड़े कौशल यादव बताते हैं कि उन्होंने राबिश आदि डाल कर सड़क को चलने लायक बनाया है। प्रशासन को कहां सुध है ई सब देखने की। पहले सब कोरोना में व्यस्त थे। अब चुनाव में।

पास में ही खड़ा एक युवक बोल पड़ता है, देखे नहीं चुनाव गरमा गया है, पटना में। वीरचंद पटेल पथ पर भाजपा और जाप कार्यकर्ताओं में कैसे लाठी चली। लाठी तो एक बार जदयू और भाजपा के बीच भी चली थी इसी सड़क पर कई बरस पहले। जदयू प्रवक्ता राजीव रंजन के भाई का सिर फट गया था तब। बीच में एक दूसरे युवा ने टोका- छोड़अ ना, लालू जी जइसन लाठी है केकरो पास। कइसे लाठी में तेल पिलवले रहलें।

पगड़ी वाले बाबा ने चिंता जाहिर की कि कोरोना में कैसे होगा चुनाव? युवक ने जवाब दिया मास्क लगाते नहीं हैं कहियो और पूछ रहे हैं कैसे होगा चुनाव। अरे ऊ कोरोना-फोरोना पटना में है, गांव में सब शांति है। भर पेट वोट करना है। चुनाव आयोग सब इंतजाम करेगा न। आप काहे ला अपना माथा खराब करले हैं बाबा।

...नहीं चुनउवे के चक्कर में गांव में कोरोना न फैल जावे डर लग रहा है, आऊर कोनो बात नय है। जनता की चिंता केकरा पास केतना है, हमसे जादे जानते हो तुम सब। बाकि वोट त हमनी सब देबे न करब। छोटका आदमी सब को कउनो डर नय है, डर तो पढ़लका सब को है। हमको अभियो नय लगता है कि ऊ सब जावेगा। हमहू देखते हैं कितना परसेंटेज वोट पड़ता है अबकी बार !

दूसरे युवा ने कहा- जेतना वोट पड़ेगा ओतने में सरकार बनेगी, और क्या। केकरो मना किया गया है कि नय दो वोट। केतना नेता सब एन्ने से ओन्नो जा रहा है देख रहे हैं ना।

पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय भी जदयू में चले गए। देखे कितना हो हल्ला हुआ सुशांत सिंह राजपूत पर। बाबा बोले, हां कुछ न कुछ बात लेके गरमाइल रहता है बिहार। बताव त चुनाव लड़े खातिर डीजीपी का पद छोड़ दिए गुप्तेश्वर। जनता की सेवा का भूत सवार है उन पर बाबा।

बाबा खिसिया गए। बोले, तुम सब हमको राजनीति नय पढ़ाव। सब जानते हैं हम, कौन काहे क्या कर रहा है। चिराग पासवान से उपेन्द्र कुशवाहा और गुप्तेश्वर पांडेय तक। हम गाना भी सुने हैं रॉबिन हुड बिहार के। अच्छा छोड़िए बाबा इ बताइए मुख्यमंत्री कौन बनेगा बिहार में?

बाबा इस बार कम बोले। कहा, कोई भी बने पर नीतीश कुमार को बुड़बक नहीं समझना, पक्कल खिलाड़ी हैं राजनीति के। घर में आग लगती है तो नाला का पानी भी लोग इस्तेमाल कर लेते हैं समझे बचवन। इ भी जान लो भगवान बुद्ध ने कहा था- पटना को आग और पानी से बड़ा खतरा रहेगा। देख रहे हो ना चिराग और उपेन्द्र को...। असली टक्कर भाजपा और जदयू में है, इ बात को गांठ बांध लो। ऊपर से सब चकाचक है। बूझे कि नय?



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Bihar Assembly Election 2020 Who Will Win | What Patna Anisabad Voters Of Have To Say and What Bihar Matdata Think Of The BJP JDU RJD Candidates


source https://www.bhaskar.com/bihar-election/news/bihar-assembly-election-2020-who-will-win-what-patna-anisabad-voters-of-have-to-say-on-bjp-jdu-rjd-candidates-127769808.html

उत्तर प्रदेश में हाथरस के बाद अब बलरामपुर जिले में दलित युवती से गैंगरेप की घटना सामने आई है। 22 साल की कॉलेज छात्रा को किडनैप कर इंजेक्शन लगाकर बेहोश कर दिया और फिर 2 आरोपियों ने दुष्कर्म किया। लड़की की हालत इतनी बिगड़ गई कि उसकी मौत हो गई। पुलिस ने साहिल और शाहिद नाम के आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है। इनके खिलाफ गैंगरेप और हत्या का केस दर्ज किया गया है। मामला गैंसड़ी इलाके का है।

बेहोशी की हालत में रिक्शे पर घर पहुंची...
युवती कॉलेज की फीस जमा कराने के लिए मंगलवार सुबह 10 बजे घर से निकली थी। शाम तक नहीं लौटी तो घरवालों ने फोन किया, लेकिन फोन बंद था। शाम करीब 7 बजे युवती गंभीर हालत में रिक्शे से घर पहुंची। उसके हाथ पर कैनुला लगा था, बेहोशी की हालत में थी और बोल भी नहीं पा रही थी। परिजन तुरंत डॉक्टर के पास ले गए। फिर डॉक्टर के कहने पर लखनऊ ले जा रहे थे, लेकिन रास्ते में ही युवती की मौत हो गई।

पेट में बहुत तेज जलन है, हम मर जाएंगे....
लड़की की मां ने बताया कि बेटी कॉलेज से लौट रही थी, रास्ते में कार में आए 3-4 लोगों ने उसे अगवा कर लिया। उसे नशे के इंजेक्शन देकर दुष्कर्म किया गया। आरोपियों ने बेटी की कमर और पैर भी तोड़ दिए, इसलिए न तो वह खड़ी हो पा रही थी और न ही बोल पा रही थी। बस इतना ही कह पाई कि पेट में बहुत तेज जलन हो रही है, हम मर जाएंगे।

आरोपियों ने डॉक्टर बुलाया था, लेकिन उसे शक हो गया
पुलिस का कहना है कि वारदात गैंसड़ी गांव में एक किराना स्टोर के पीछे के कमरे में हुई। पीड़ित की सैंडल उसी कमरे के बाहर मिली हैं। दुकान मालिक ही घटना का मास्टरमाइंड बताया जा रहा है। जांच में पता चला है कि आरोपियों ने दुष्कर्म के बाद पीड़ित का इलाज करवाने की कोशिश की थी। डॉक्टर मौके पर आया भी, लेकिन शक होने पर उसने कह दिया कि घरवालों की गैर-मौजूदगी में इलाज नहीं कर सकता।

पुलिस ने अंतिम संस्कार में फिर जल्दबाजी दिखाई
न्यूज एजेंसी आईएएनएस की रिपोर्ट के मुताबिक अंतिम संस्कार में पुलिस ने हाथरस के मामले की तरह ही जल्दबाजी दिखाई। बलरामपुर की पीड़ित का शव भी भारी पुलिस बल की तैनाती में मंगलवार रात को ही जला दिया गया। यह बात भी सामने आ रही है कि पुलिस ने मामला दबाने की कोशिश की थी। हालांकि, लोगों का कहना है कि पीड़ित परिवार की सहमति से ही अंतिम संस्कार किया गया।

अखिलेश यादव बोले- भाजपा सरकार अब लीपापोती न करे
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने ट्वीट कर कहा है कि हाथरस के बाद अब बलरामपुर में भी एक बेटी के साथ सामूहिक बलात्कार और उत्पीड़न का घृणित अपराध हुआ है। भाजपा सरकार बलरामपुर में हाथरस जैसी लापरवाही और लीपापोती न करे, बल्कि अपराधियों पर तुरंत कार्रवाई करे।

हाथरस के बाद अब बलरामपुर में भी एक बेटी के साथ सामूहिक बलात्कार और उत्पीड़न का घृणित अपराध हुआ है व घायलावस्था में पीड़िता की मृत्यु हो गयी है. श्रद्धांजलि!

भाजपा सरकार बलरामपुर में हाथरस जैसी लापरवाही व लीपापोती न करे और अपराधियों पर तत्काल कार्रवाई करे.#Balrampur#NoMoreBJP

— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) September 30, 2020

हाथरस गैंगरेप की घटना पर ये खबरें भी पढ़ें...

1. गैंगरेप पीड़ित के गांव से रिपोर्ट: आंगन में भीड़ है, भीतर बर्तन बिखरे पड़े हैं, दाल और कच्चे चावल रखे हैं, दूर बाजरे के खेत में चिता से अभी भी धुआं उठ रहा है

2. हाथरस रेप केस पर कवि की पीड़ा:कुमार विश्वास बोले- कब तक मौन रहोगे विदुरों? कब अपने लब खोलोगे, जब सर ही कट जायेगा तो किस मुंह से क्या बोलोगे?



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घरवालों का कहना है बेटी सुबह 10 बजे घर से निकली और शाम 7 बजे लौटी, उसकी हालत बहुत खराब थी। कह रही थी कि पेट में तेज जलन हो रही है। (पीड़ित युवती का फाइल फोटो)


source /national/news/after-hathras-another-woman-raped-killed-in-uttar-pradesh-two-arrest-127769850.html

(मुकेश कौशिक) उत्तर प्रदेश में हाथरस की बेटी से दुष्कर्म का मामला सामने आया तो केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी चर्चा के घेरे में आ गईं। सोशल मीडिया पर उनका पीछा किया गया। पूछा गया कि वे अब चुप क्यों हैं। यूपीए की सरकार के समय और खास तौर से निर्भया मामले के बाद उन्होंने अपनी आवाज बुलंद की थी। लेकिन अब एक छोटा सा संदेश भी नहीं दिया।

भास्कर ने उनसे इस बारे में सीधे सवाल किए। इस पर स्मृति ने कहा कि उन्हें अंदाजा था कि वे निशाने पर आएंगी। स्मृति से इसके अलावा नए कृषि कानून के खिलाफ आक्रोश, चीन के मुद्दे पर विपक्ष के आरोपों को लेकर भी सवाल पूछे गए। प्रस्तुत है इंटरव्यू के प्रमुख अंश...

दुष्कर्म के खिलाफ आप आवाज उठाती रही हैं। अब हाथरस की बेटी के मामले में चुप क्यों हैं?

जवाब: राष्ट्रीय महिला आयोग और यूपी सरकार लगातार पीड़ित के परिवार के संपर्क में रहा है। जांच चल रही है, इसलिए मैं सार्वजनिक बयान नहीं दे रही हूं। मैंने मुख्यमंत्री से चर्चा की है। गृह विभाग के अधिकारियों से भी जानकारी ली। उन्होंने बताया कि तत्काल एफआईआर दर्ज हुई थी। फास्ट ट्रैक कोर्ट के जरिए पीड़ित को इंसाफ दिलाएंगे। यूपी सरकार ने एसआईटी के गठन की घोषणा की है।

निर्भया केस के वक्त आपने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को चूड़ियां भेंट करने की पेशकश की थी। अब किसे भेंट करेंगी?

जवाब: मैं महिलाओं पर अत्याचार के खिलाफ जनता के आक्रोश को समझती हूं। सोशल मीडिया पर मुझे ट्रोल करने वालों के लिए मेरा कोई संदेश नहीं है। अमेठी जीतने के बाद यह स्वाभाविक था कि देश में मुद्दा कोई भी हो, निशाने पर हमेशा मैं रहूंगी। अमेठी लड़ते वक्त मैं यह जानती थी। मैंने इसे स्वीकार किया है।

पीड़ित का दाह संस्कार जबरन कराने की खबर है?

जवाब: मैं जांच का हिस्सा नहीं हूं। सीएम ने न्याय का संकल्प लिया है। पकड़े गए लोगों पर त्वरित कार्रवाई हो। निर्भया केस में न्याय में सालों लग गए। इस केस में न लगें, यही मेरी इच्छा है।

राहुल गांधी का कहना है कि भाजपा नेतृत्व की सरकार के रहते हुए बेटियां सुरक्षित नहीं हैं?

जवाब: राहुल तब नहीं बोलते, जब छत्तीसगढ़ में पत्रकार और राजस्थान में महिलाएं प्रताड़ित की जाती हैं। राहुल नहीं जानते कि यह वही सरकार है, जिसने दुष्कर्म के मामलों में मौत की सजा सुनिश्चित की है। राहुल वो सज्जन हैं, जिन्होंने अपने ही प्रधानमंत्री की ओर से लाया गया अध्यादेश फाड़ दिया था।

विपक्ष का आरोप है कि कृषि बिल पारित कराने में संसदीय प्रक्रियाओं का पालन नहीं हुआ?

जवाब: संसदीय प्रक्रिया के तहत विधेयक सदन में आए। संख्या के आधार पर पारित किए गए। तब राहुल गांधी और सोनिया गांधी संसद में नहीं थे। कांग्रेस ने अपने 2019 के घोषणा-पत्र में लिखा था कि वह एपीएमसी एक्ट हटाएगी। क्या राहुल मानते हैं कि उनकी माता जी ने काला चुनाव घोषणापत्र जारी किया था।

राहुल गांधी कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री चीन से डर गए हैं। चीन का नाम तक नहीं ले रहे हैं?

जवाब: संसद में विपक्ष के कई नेताओं ने जितनी जिम्मेदारी से बात रखी, उसकी आधी भी राहुल के पास होती तो कांग्रेस आज बदहाल न होती।

निर्भया मामले के बाद कानून सख्त बनाया गया। इसके बावजूद दरिंदगी खत्म क्यों नहीं हो रही है?

जवाब: पाॅक्सो कानून लाते समय भी इस पर बहस हुई थी। जिम्मेदारी सिर्फ प्रशासन की नहीं, बल्कि हर परिवार, समुदाय और जागरूकता का प्रसार करने वाले संगठनों की भी है।

चीन को कोई कड़ा संदेश?

जवाब: यह प्रधानमंत्री, विदेश मंत्रालय का विषय है। मैं हेडलाइन चेजर नहीं हूं।



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केंद्रीय मंत्री समृति ईरानी ने कहा- मैं महिलाओं पर अत्याचार के खिलाफ जनता के आक्रोश को समझती हूं। (फाइल फोटो)


source /national/news/smriti-irani-who-presented-bangles-to-manmohan-singh-in-the-nirbhaya-case-said-after-winning-amethi-i-knew-that-no-matter-what-the-country-is-i-will-always-be-the-target-127769778.html

(रवि अटवाल) हाथरस में एक दलित लड़की के साथ जो दरिंदगी हुई, उससे पूरा देश गुस्से में है। लड़की के साथ हैवानगी करने वालों को फांसी देने की मांग उठ रही है। सोशल मीडिया पर एक फोटो चल रही है, जिसमें बताया गया है कि यह गैंगरेप पीड़ित लड़की है। लेकिन असल में जो फोटो दिखाई गई है, वह लड़की चंडीगढ़ की मनीषा है।

मनीषा यादव की दो साल पहले बीमारी के चलते मौत हो गई थी। जाने-अनजाने में चंडीगढ़ की बेटी और उनके घरवालों के साथ अन्याय हो रहा है। आम पब्लिक ही नहीं, बल्कि बड़े-बड़े सेलिब्रिटी भी चंडीगढ़ की मनीषा की तस्वीर को वायरल करने में लगे हुए हैं।

देश के लोग भले ही मनीषा की तस्वीरों को सोशल मीडिया में पोस्ट कर अपनी संवेदनाएं व्यक्त कर रहे हैं, लेकिन इसका खामियाजा मनीषा के घरवालों को उठाना पड़ रहा है। पिता के जख्म फिर ताजा हो गए हैं, जो अपनी जवान बेटी के चले जाने का गम भुलाने की कोशिश कर रहे थे।

मनीषा के पिता मोहन लाल यादव ने बताया कि उन्हें बेहद दुख हो रहा है कि उनकी बेटी की मौत के बाद भी बदनामी की जा रही है। मोहन लाल ने बुधवार को चंडीगढ़ के एसएसपी को इस संबंध में शिकायत दी है और कहा कि सोशल मीडिया पर उनकी बेटी की तस्वीरें वायरल होने से रोका जाए। अगर कोई ऐसा कर रहा है तो उन पर कार्रवाई की जाए।

पथरी की बीमारी थी

मनीषा यादव का परिवार रामदरबार काॅलोनी में रहता है। मनीषा की 21 जून 2018 को शादी हुई थी। उसे पथरी की बीमारी थी और दिनों दिन ये बीमारी बढ़ती गई। 22 जुलाई 2018 को मनीषा की मौत हो गई।

एडवोकेट अनिल गोगना ने बताया कि रेप पीड़ित के बारे में किसी भी तरह की जानकारी को सार्वजनिक करना दंडनीय अपराध है। ऐसा करने वालों पर आईपीसी की धारा 228(ए) के तहत कार्रवाई हो सकती है। इस धारा के तहत दोषियों को दो साल तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान है। पुलिस से मामले की जांच की मांग की जाएगी।



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ये मनीषा की वही फोटो है, जिसे हाथरस गैंगरेप पीड़िता की बताकर वायरल किया जा रहा है।


source /national/news/manisha-from-chandigarh-the-girl-who-was-described-as-hathras-gang-rape-victim-died-two-years-ago-due-to-illness-127769777.html

(समीर राजपूत) पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भरतसिंह सोलंकी ने 101 दिन तक कोरोना से लड़ाई लड़ी और जीत गए। गुरुवार को उन्हें अहमदाबाद के सिम्स अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया जाएगा। इस दौरान वे 51 दिन तक वेंटिलेटर पर भी रहे। अस्पताल का दावा है कि कोरोना के इलाज के लिए 101 दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहने वाले वे पहले एशियाई हैं। जब उन्हें दाखिल किया गया था, तब उनके फेफड़े पत्थर जैसे सख्त हो गए थे।

वेंटिलेटर पर रखने के बावजूद उनका ऑक्सीजन लेवल बढ़ नहीं रहा था। उन्हें 100% ऑक्सीजन दिए जाने के बाद भी 85% ऑक्सीजन मिल रही थी। हालांकि, चार डॉक्टरों, नर्सिंग, पैरामेडिकल अपने फिजियोथेरेपिस्ट स्टाफ के साथ 12 लोगों की टीम उनके इलाज में जुटी हुई थी।

सिम्स के पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. अमित पटेल ने बताया कि 67 साल के भरतसिंह कोरोना पाॅजिटिव आने के बाद 10 दिनों तक वडोदरा में इलाज कराते रहे। उसके बाद 30 जून को उन्हें सिम्स में भर्ती कराया गया। उनकी हालत इतनी गंभीर थी कि उन्हें तत्काल वेंटिलेटर पर रखा गया।

शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिलने पर उन्हें दिन में 4-5 बार ‘लंग्स प्रोनिंग रिक्रूटमेंट थेरेपी’ दी गई। इससे 15-20 दिनों में उनकी ऑक्सीजन की जरूरत घटने लगी। लेकिन उनके फेफड़े और खून में बैक्टीरियल और फंगस इंफेक्शन होने लगा। मल्टीपल एंटीबॉयोटिक से इन्हें इंफेक्शन मुक्त किया गया। इस दौरान उनके स्नायुतंत्र कमजोर हो गए और पांच प्लाज्मा फेरासिस कराने के बाद 51 दिनों तक वेंटिलेटर पर आईसीयू में रखा गया।

डॉक्टर बोले- चुनौती ऑक्सीजन लेवल को बनाए रखने की थी

भरतसिंह को वेंटिलेटर पर रखने के बावजूद उनका ऑक्सीजन लेवल बनाए रखना किसी चुनौती से कम नहीं था। अगर ऑक्सीजन लेवल कम होता तो दो से चार दिनों में ही उनका हार्ट बंद होने और शरीर के अन्य अंगों के काम न करने का खतरा था। इसके लिए उन्हें ‘लंग्स प्रोनिंग रिक्रूटमेंट थेरेपी’ दी गई। चूंकि उनका वजन ज्यादा था इसलिए थेरेपी देने में भी काफी मुश्किल आई। थेरेपी दिए जाने के बाद उनकी स्थिति लगातार सुधरती गई। उनका वजन भी 25 से 30% घट गया। अब वे पूरी तरह स्वस्थ हैं।



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अस्पताल में बातचीत करते भरतसिंह।


source /national/news/51-day-battle-with-corona-won-by-being-on-ventilator-127769776.html

सफेद कुर्ता पाजामा, सर पर बंधा सफेद साफा, कंधे पर रखा फावड़ा। कमला को कोई दूर से क्या, पास से भी देखे तो धोखा खा जाए कि कोई पुरुष खेत में काम कर रहा है। दिल्ली से करीब 120 किलोमीटर दूर मुजफ्फरनगर के मीरापुर दलपत गांव की रहने वाली 63 साल की कमला ने अपनी जिंदगी के चार दशक मर्द बनकर खेतों में काम करते हुए गुजार दिए। एक महिला के लिए मर्द बनकर काम करना आसान नहीं था। लेकिन, जिंदगी के सामने ऐसे मुश्किल हालात थे कि उन्होंने घूंघट उतारकर सर के बाल काट लिए और पगड़ी बांध ली।

किसान परिवार में पैदा हुई कमला होश संभालते ही खेतों में काम करने लगी थीं। शादी हुई तो 17 महीने बाद ही पति की दुखद मौत हो गई। बाद में देवर के साथ उन्हें 'बिठा दिया' गया। इस रिश्ते से उन्हें एक बेटी हुई लेकिन, ये रिश्ता ज्यादा नहीं चल सका और वो अपने भाइयों के घर लौट आईं। कमला के छोटे भाई को कैंसर हो गया। दम तोड़न से पहले उन्होंने कमला से वादा लिया कि वो उनके बच्चों को पालेंगी और पत्नी का ध्यान रखेंगी।

कमला कहती हैं, भाई के दोनों बच्चे छोटे थे। कोई सहारा नहीं था। मैंने उनकी जिम्मेदारी संभाल ली और खेती का काम अपने हाथ में ले लिया। लेकिन, महिला के लिए अकेले खेत में जाकर काम करना आसान नहीं था। लोगों की नजरों से बचने के लिए मैंने मर्द का रूप धर लिया। बाल काटे और पगड़ी बांध ली।

भारत के खेतों में महिलाएं सदियों से काम करती रहीं हैं। लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इस समाज में आज भी मर्दवादी नजरिया हावी है। महिलाएं खेतों पर काम करने जाती तो हैं लेकिन, अकेले नहीं, बल्कि समूहों में या परिवार के दूसरे लोगों के साथ।

कमला अपनी भाभी के साथ। कमला की शादी के 17 महीने बाद ही उनके पति की मौत हो गई, उसके बाद उन्होंने परिवार की जिम्मेदारी संभाल ली।

लेकिन, कमला के अकेले कंधों पर जमीन जोतने-बोने और फसल की देखभाल करने की जिम्मेदारी थी। रात-बेरात खेतों को पानी देने के लिए जाना पड़ता था। मर्दवादी समाज की नजर और तानों से बचने के लिए वो मर्द ही बन गईं। कमला कहती हैं, 'मैं बेधड़क खेतों में काम करती थी। फसल को पानी देना होता था तो रात को आती थी, सुबह तक काम करके जाती थी। कभी डर महसूस नहीं हुआ। मर्दों की पोशाक ने मुझे सबकी नजरों से बचा लिया।

वो कहती हैं, 'खेत में काम कर रही एक अकेली औरत के साथ कुछ भी हो सकता था, औरत अकेली हो तो हर आंख उस पर ठहरती है। लेकिन खेत में काम कर रहे अकेले मर्द पर किसी का ध्यान नहीं जाता। कमला ने मर्द बनकर लगभग चार दशकों तक खेतों में काम किया। उन्होंने उम्र के छह दशक पार करने के बाद भी न अपना ये रूप छोड़ा है और ना ही काम करना। कमला कहती हैं कि उन्हें भाग्य ने एक के बाद एक झटके दिए, लेकिन वो कभी डगमगाई और डरीं नहीं।

वो अपने पति की मौत, ससुराल में हुए शोषण को अब याद करना नहीं चाहतीं। इस बारे में सवाल करते ही उनके आंखें पथरा जाती हैं। वो कहती हैं, मैं अब उन सब बातों को याद करना नहीं चाहती। ना ही उसका कोई फायदा है।

कमला ने अपनी पूरी जिंदगी खेतों में काम करते बिता दी। वो कहती हैं, मैं हमेशा काम में लगी रहती थी। दिन में एक वक्त खाकर काम किया। सारा दिन ईख छोलती थी। भाभी से कह देती थी कि खाना देने मत आना, घर आकर ही खाऊंगी। इन खेतों ने हमारा परिवार पाला है। कमला ने सिर्फ खेत में ही काम नहीं किया, बल्कि वो गन्ना डालने मिल भी जाती थीं और मंडी भी। वो कहती हैं, 'मैं मर्दों के बीच अकेली औरत होती थी। लेकिन लोग पहचान ही नहीं पाते थे कि मैं औरत हूं।'

कमला के इस बात की खुशी है कि उनके एक भतीजे का घर बस गया है और दूसरे की भी जल्द शादी होने वाली है। वो कहती हैं, 'मेरी जिंदगी का मकसद पूरा हो गया। भाई से जो वादा किया था, निभा दिया।' हमेशा संघर्ष करती रहीं कमला को उम्र के इस पड़ाव पर पहुंचने के बाद भी सुकून नहीं है। वो जिन खेतों में काम कर रहीं थी, वो उनके भाई की संपत्ति हैं। खेतों की ओर देखते हुए बात कर रही कमला कहती हैं, 'मेरे खेत...और ये कहते-कहते उनकी जबान रुक जाती है, खुद को संभालते हुए वो कहती हैं, अब तो ये भाई के बच्चों के खेत हैं।

मुजफ्फरनगर के मीरापुर दलपत गांव की रहने वाली 63 साल की कमला पिछले चार दशकों से अपने खेतों में मर्द बनकर काम कर रही हैं।

भारत में पारंपरिक तौर पर पिता की संपत्ति, जमीन-जायदाद भाइयों के हिस्से आती है और बहनों के हिस्से आती है ससुराल, जहां वो बाकी जिंदगी रहती हैं। लेकिन, भारत का कानून बेटियों को भी संपत्ति पर बराबर का हक देता है। कमला ने कभी अपना ये हक लेने के बारे में सोचा तक नहीं है।

अब जब उनका शरीर ढल रहा है, उन्हें अपनी आगे की जिंदगी की चिंता हैं। वो कहती हैं, 'मैं अपने लिए एक कमरा तक नहीं बना सकी। अपना सिर छुपाने के लिए मेरे पास अपनी कोई जगह नहीं है। कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मुझे घर दिलाने की कोशिश की थी। लेकिन, वो काम भी कोरोना में अटक गया है। बात करते-करते कमला के चेहरे के भाव कई बार बदलते हैं। उनके चेहरे पर भाई के परिवार को पालने का सुकून दिखाई देता है तो अकेलेपन का अफसोस भी और बुढ़ापे को लेकर चिंता भी।

एक औरत जो सारी जिंदगी समाज की पाबंदियों को तोड़कर अपने दम पर जीती रही, चलते-चलते कहती हैं, 'अगर मेरे आवास के लिए कुछ हो सके तो कीजिएगा। मैं भी कोशिश कर ही रही हूं। जो भी होगा, जैसे भी होगा, एक कमरा तो बना ही लूंगी।' मैं मन ही मन इस खुद्दार औरत को सलाम करती हूं और मेरे दिमाग में कई सवाल एक साथ कौंधने लगते हैं।

'समाज कमला जैसी असली हीरो का सम्मान क्यों नहीं कर पाता है? अपना सबकुछ त्याग देने वाली मेहनतकश कमला अब उम्र के आखिरी पड़ाव पर इतना अकेला क्यों महसूस कर रही हैं? उन्हें सरकार की सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के तहत कोई फायदा क्यों नहीं मिल सका है?'

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kamala A women of muzaffarnagar turns as a man and starts farming to survive her Family


source https://www.bhaskar.com/db-original/news/kamala-a-women-of-muzaffarnagar-turns-as-a-man-and-starts-farming-to-survive-her-family-127769469.html

महाराष्ट्र के सांगली जिले के अंकलखोप गांव के रहने वाले शीतल सूर्यवंशी एमबीए करने के बाद एक मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब करते थे। लाखों की सैलरी थी, 6 साल तक उन्होंने अलग-अलग पोस्ट पर काम किया। लेकिन, 2015 में उन्होंने नौकरी छोड़ दी और ऑर्गेनिक अमरूद की बागवानी का बिजनेस शुरू किया। आज हर दिन 4 टन अमरूद उनके बगीचे से निकलता है। मुंबई, पुणे, सांगली सहित कई शहरों में वे अमरूद भेजते हैं। एक सीजन में 12 लाख रुपए की कमाई हो रही है।

34 साल के शीतल के पिता किसान हैं। दो भाई जॉब करते हैं, एक डॉक्टर है और दूसरा आर्किटेक्ट। शीतल कहते हैं, ' जब नौकरी छोड़कर खेती करने का फैसला लिया तो परिवार ने विरोध किया। उनका कहना था कि अच्छी खासी नौकरी छोड़कर खेती क्यों करना चाहते हो, खेती में मुनाफा ही कितना है..?

वो कहते हैं कि हम जहां रहते हैं वहां के ज्यादातर किसान गन्ने की खेती करते हैं। मेरे पिता भी गन्ने की खेती करते थे लेकिन इसमें ज्यादा मुनाफा नहीं होता था। ऊपर से समय भी ज्यादा लगता था। एक फसल तैयार होने में 15-16 महीने लग जाते थे। साथ ही फैक्ट्री में बेचने के बाद पैसे देर से अकाउंट में आते थे।

2015 में शीतल ने नौकरी छोड़ दी और ऑर्गेनिक अमरूद की बागवानी का बिजनेस शुरू किया।

इसलिए मैंने सोचा कि कुछ अलग करने का रिस्क लिया जाए। बाकी किसान तो गन्ना बो रहे हैं लेकिन हम दूसरी फसल लगाएंगे। शुरुआत मैंने अंगूर से की लेकिन इसमें कुछ खास मुनाफा नहीं हुआ। इसी बीच मेरा एक दोस्त मुझसे मिला। शिरडी में अमरूद की उसकी नर्सरी थी। उसने मुझे ऑर्गेनिक अमरूद उगाने का आइडिया दिया। इसके बाद मैं शिरडी गया, वहां के बागानों में गया और अमरूद की खेती को सीखा।

शीतल बताते हैं' 'जब मैंने अपने पिता को अमरूद उगाने के बारे में बताया तो उन्होंने मना कर दिया। वो नहीं चाहते थे कि गन्ने की जगह हम किसी और फसल को उगाने का जोखिम लें। फिर मैंने उन्हें समझा बुझाकर दो एकड़ जमीन पर अमरूद लगाने फैसला किया। इसके बाद मैं अलग-अलग शहरों में गया। वहां अमरूद के मार्केट, कहां कितनी डिमांड है और वहां तक हमें पहुंचने का रास्ता क्या होगा, मिट्टी कैसी होनी चाहिए, प्लांट की कौन सी नस्ल ठीक होगी, इन सब चीजों को लेकर कुछ दिन रिसर्च की।'

वो बताते हैं,' अगस्त 2015 में मैंने 2 तरह की अमरूद की फसल लगाई। एक ललित और दूसरी किस्म जी विलास की। पहले साल ही 20 टन का प्रोडक्शन हुआ था। 3-4 लाख रु की आमदनी हुई थी। इससे हमारा मनोबल बढ़ा और अगले सीजन से हमने और ज्यादा जमीन पर अमरूद उगाने का प्लान बनाया।'

वे केमिकल फर्टिलाइजर की जगह जैविक खाद का उपयोग करते हैं। पेड़ की सड़ी पत्तियों को गड्ढा खोदकर नीचे डाल देते हैं।

शीतल आज 4 एकड़ जमीन पर अमरूद उगा रहे हैं। 5 लोग उनके साथ काम करते हैं। हर एकड़ में 10 टन अमरूद निकलता है। अभी तीन प्रमुख किस्म ललित, जी बिलास और थाईलैंड पिंक का उत्पादन होता है। ललित की साइज छोटी होती है, जबकि जी बिलास और थाईलैंड पिंक का साइज बड़ा होता है।

शीतल बताते हैं,' गन्ने की खेती में टाइम तो ज्यादा लगता ही था, साथ ही पानी ज्यादा देना होता था। ऊपर से हर साल कल्टीवेशन की जरूरत होती थी। लेकिन, अमरूद की खेती में ऐसा नहीं होता है। एक बार प्लांट लगा दिया तो 10-12 साल की छुट्टी हो गई। इससे हर साल प्लांटेशन में होने वाला खर्च बचता है।

शीतल कहते हैं कि पिछले साल बाढ़ आई थी तो हमें नुकसान हुआ था। इस बार जब कोरोना के चलते लॉकडाउन लगा तो ज्यादा घाटा हुआ। 4-5 टन अमरूद पक के सड़ गया, उसे हम मार्केट में नहीं ले जा पाए। लेकिन, अब जुलाई के बाद से हालात सामान्य हो रहे हैं और धीरे-धीरे सबकुछ पटरी पर वापस लौट रहा है। अब मार्केट में वापस से हम अमरूद की सप्लाई कर रहे हैं।

वो कहते हैं कि हर साल काफी संख्या में अमरूद पक कर नीचे गिर जाते हैं, कई बार पूरे अमरूद बिक भी नहीं पाते। इसलिए आगे हम एक प्रोसेसिंग यूनिट लगाने के बारे में विचार कर रहे हैं ताकि इन अमरूदों से दूसरे प्रोडक्ट तैयार किया जा सके।

आज हर दिन 4 टन अमरूद उनके बगीचे से निकलता है। उन्होंने तीन किस्म की अमरूद अपने बगीचे में लगाए हैं।

कैसे करें ऑर्गेनिक अमरूद की खेती

शीतल बताते हैं कि ऑर्गेनिक अमरूद की बागवानी शुरू करने से पहले रिसर्च जरूरी है। आपको जहां खेती करनी है वहां के मार्केट, डिमांड और ट्रांसपोर्टेशन के बारे में जानकारी होनी चाहिए। इसके साथ ही हम जिस जमीन पर बागवानी शुरू करने जा रहे हैं वो कम पानी वाली होनी चाहिए। हमें केमिकल फर्टिलाइजर की जगह ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर का उपयोग करना चाहिए। इससे जमीन की उपजाऊ शक्ति भी बढ़ती है। दो पौधों के बीच 9/6 की दूरी होनी चाहिए। जुलाई से सितंबर के महीने पौधे लगाए जाते हैं।

कितना वक्त लगता है एक पौधे के तैयार होने में

अच्छे किस्म की अमरूद के पौधे लगभग एक साल में तैयार हो जाते हैं। पहले साल में एक पौधे से 6-7 किलो तक अमरूद निकलता है। उसके कुछ समय बाद 10-12 किलो तक उत्पादन होने लगता है।

क्या- क्या सावधानियां जरूरी है
शीतल बताते हैं कि अमरूद की बागवानी के लिए सही समय और सही मिट्टी का होना जरूरी है। हमें कम पानी वाली मिट्टी पर इसकी प्लांटिंग करनी चाहिए। इस पर क्लाइमेट और बारिश का असर ज्यादा होता है, इसलिए उसके लिए पहले से तैयारी जरूरी है। ज्यादा प्रोडक्शन के लिए अक्सर लोग केमिकल फर्टिलाइजर का उपयोग करने लगते हैं। लेकिन, हमें इससे बचना चाहिए। इससे प्लांट को नुकसान तो होता ही है साथ ही हमारी जमीन की सेहत के लिए भी ये ठीक नहीं होता है।

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महाराष्ट्र के सांगली जिले के अंकलखोप गांव के रहने वाले शीतल सूर्यवंशी ऑर्गेनिक अमरूद की बागवानी करते हैं।


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आईपीएल के 13वें सीजन का 13वां मैच किंग्स इलेवन पंजाब (KXIP) और मुंबई इंडियंस (MI) के बीच आज अबु धाबी में खेला जाएगा। इस सीजन में अब तक हुए 12 मैचों में ही 2 सुपर ओवर खेले गए। पहले सुपर ओवर में दिल्ली ने पंजाब को हराया। वहीं, दूसरे सुपर ओवर में मुंबई को बेंगलुरु के हाथों हार का सामना करना पड़ा। सीजन में अब तक दोनों ही टीमों ने 3-3 मैच खेले हैं। जिसमें दोनों को 1-1 मैच में ही जीत नसीब हुई।

मुंबई के कप्तान रोहित शर्मा आईपीएल में 5000 रन बनाने से 2 रन दूर हैं। वे 191 मैचों में 31.63 की औसत से 4998 रन बना चुके हैं। अब तक केवल दो बल्लेबाज ही आईपीएल में 5000 से ज्यादा रन बना सके हैं। कोहली ने 178 मैचों में 37.68 की औसत से 5426 रन बनाए हैं। रैना के 193 मैचों में 33.34 की औसत से 5368 रन हैं।

दोनों टीमों के सबसे महंगे खिलाड़ी
पंजाब में कप्तान लोकेश राहुल 11 करोड़ और ग्लेन मैक्सवेल 10.75 करोड़ रुपए कीमत के साथ सबसे महंगे प्लेयर हैं। वहीं, मुंबई में कप्तान रोहित शर्मा सबसे महंगे खिलाड़ी हैं। टीम उन्हें एक सीजन का 15 करोड़ रुपए देगी। उनके बाद टीम में हार्दिक पंड्या का नंबर आता है, उन्हें सीजन के 11 करोड़ रुपए मिलेंगे।

मुंबई में ईशान किशन और पोलार्ड से उम्मीद
पिछले मैच के हीरो मुंबई को ईशान किशन और कीरोन पोलार्ड पर एक बार फिर रन बनाने की जिम्मेदारी होगी। रोहित के अलावा क्विंटन डिकॉक और सूर्यकुमार यादव भी बल्लेबाजी में की-प्लेयर होंगे। गेंदबाजी में ट्रेंट बोल्ट और जसप्रीत बुमराह जैसे दिग्गज बॉलरों से काफी उम्मीदें होंगी।

पंजाब में गेल को मिल सकता है मौका
पंजाब में क्रिस गेल को मौका मिल सकता है। ग्लेन मैक्सवेल और निकोलस पूरन में से किसी एक की जगह गेल को प्लेइंग इलेवन में जगह मिल सकती है। कप्तान लोकेश राहुल और मयंक अग्रवाल शानार फॉर्म में हैं। वहीं, गेंदबाजी में शेल्डन कॉटरेल, मोहम्मद शमी के अलावा रवि बिश्नोई और मुरुगन अश्विन पर अहम जिम्मेदारी होगी।

हेड-टु-हेड
दोनों के बीच अब तक 24 मुकाबले हुए हैं। इसमें मुंबई ने 13 जबकि पंजाब ने 11 मैच जीते हैं। पिछले दोनों सीजन की बात की जाए तो दोनों टीमों के बीच 5 मैच खेले गए, जिसमें मुंबई ने 3 और पंजाब ने 2 मैच जीते।

पिच और मौसम रिपोर्ट
अबु धाबी में मैच के दौरान आसमान साफ रहेगा। तापमान 28 से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच रहने की संभावना है। पिच से बल्लेबाजों को मदद मिल सकती है। यहां स्लो विकेट होने के कारण स्पिनर्स को भी काफी मदद मिलेगी। शेख जायद स्टेडियम में टॉस जीतने वाली टीम पहले गेंदबाजी करना पसंद करेगी। यहां हुए पिछले 44 टी-20 में पहले गेंदबाजी करने वाली टीम की जीत का सक्सेस रेट 56.81% रहा है।

  • इस मैदान पर हुए कुल टी-20: 44
  • पहले बल्लेबाजी करने वाली टीम जीती: 19
  • पहले गेंदबाजी करने वाली टीम जीती: 25
  • पहली पारी में टीम का औसत स्कोर: 137
  • दूसरी पारी में टीम का औसत स्कोर: 128

मुंबई ने सबसे ज्यादा 4 बार खिताब जीता
आईपीएल इतिहास में मुंबई ने सबसे ज्यादा 4 बार (2019, 2017, 2015, 2013) खिताब जीता है। पिछली बार उसने फाइनल में चेन्नई को 1 रन से हराया था। मुंबई ने अब तक 5 बार फाइनल खेला है। वहीं, पंजाब ने अब तक 1 बार फाइनल (2014) खेला था। उसे केकेआर ने 3 विकेट से हराया था।

आईपीएल में मुंबई का सक्सेस रेट 57.63%, यह पंजाब से ज्यादा
लीग में मुंबई का सक्सेस रेट पंजाब से ज्यादा है। मुंबई ने आईपीएल में 190 मैच खेले हैं। इसमें उसने 110 मैच जीते और 80 हारे हैं, यानि लीग में उसका सक्सेस रेट 57.63% है। वहीं, लीग में पंजाब का सक्सेस रेट 46.08% है। पंजाब ने लीग में अब तक 179 मैच खेले, जिसमें 83 जीते और 96 हारे हैं।



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KXIP vs MI Head To Head Record - Predicted Playing DREAM11 - IPL Match Preview Update | Kings XI Punjab vs Mumbai Indians IPL Latest News


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बाबरी मस्जिद को गिराने के बारे में अब जो फैसला आया है, उस पर तीखा विवाद छिड़ गया है। इस फैसले में सभी कारसेवकों को दोषमुक्त कर दिया गया है। कुछ मुस्लिम संगठनों के नेता कह रहे हैं कि यदि मस्जिद गिराने के लिए कोई भी दोषी नहीं है तो फिर वह गिरी कैसे? सरकार और अदालत ने अभी तक उन लोगों को पकड़ा क्यों नहीं, जो मस्जिद ढहाने के दोषी थे? जो सवाल हमारे कुछ मुस्लिम नेता पूछ रहे हैं, उनसे भी ज्यादा तीखे सवाल अब पाकिस्तान के नेता, अखबार और चैनल पूछेंगे। इस फैसले को लेकर देश में सांप्रदायिक असंतोष और तनाव फैलाने की कोशिशें शुरू हो गई हैं।

मान लें कि सीबीआई की अदालत श्री लालकृष्ण आडवाणी, डॉ. मुरलीमनोहर जोशी और उमा भारती जैसे सभी आरोपियों को सजा देकर जेल भेज देती तो क्या होता? पहली बात तो यह कि इन नेताओं ने बाबरी मस्जिद के उस ढांचे को गिराया है, इसका कोई भी ठोस या खोखला-सा प्रमाण भी उपलब्ध नहीं है। यह ठीक है कि ये लोग उस प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे थे लेकिन इनमें से किसी ने उस ढांचे की एक ईंट भी तोड़ी हो, ऐसा किसी फोटो या वीडियो में नहीं देखा गया।

इसके विपरीत इन नेताओं ने उस वक्त भीड़ को काबू करने की भरसक कोशिश की, इसके कई प्रमाण उपलब्ध हैं। आडवाणी जी ने तो सारी घटना पर काफी दुख भी प्रकट किया। यदि अदालत इन दर्जनों नेताओं को अपराधी ठहराकर सजा दे देती तो क्या होता? यही माना जाता कि ठोस प्रमाणों के अभाव में अदालत ने मनमाना फैसला दिया है लेकिन सवाल यह भी है कि वह मस्जिद जिन्होंने गिराई, उन्हें क्यों नहीं पकड़ा गया और सजा क्यों नहीं दी गई?

क्या किसी मंदिर या मस्जिद या गिरजे को कोई यों ही गिरा सकता है? क्या उसको गिराना अपराध नहीं है? यदि आप मानते हैं कि 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में यह अपराध हुआ है तो वे अपराधी कौन हैं? अदालत का कहना है कि सबूत बहुत कमजोर थे। नेताओं के रिकॉर्ड किए हुए भाषण अस्पष्ट थे, जिनका ठीक-ठाक अर्थ समझना मुश्किल था। जो फोटो सामने रखे गए, उनमें चेहरे पहचाने नहीं जा सकते थे।

अदालत तो ठोस प्रमाणों के आधार पर फैसला करती है। यदि प्रमाण कमजोर हैं तो इसमें अदालत का क्या दोष है? प्रमाण जुटाना तो सीबीआई का दायित्व है लेकिन उसके बारे में तो कहा जाता है कि वह पिंजरे का तोता है। मान लें कि सीबीआई ठोस प्रमाण जुटा लेती और जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा है कि बाबरी मस्जिद का ध्वंस कानून का भयंकर उल्लंघन था और भाजपा के इन नेताओं को सजा हो जाती तो क्या हो जाता? क्या मस्जिद फिर खड़ी हो जाती? जो दो-ढाई हजार लोग उसी विवाद के कारण मारे गए थे, क्या वे वापस आ जाते?

मंदिर-मस्जिद पर पिछले साल सर्वोच्च न्यायालय ने जो लगभग सर्वमान्य फैसला दिया है, क्या वह निरर्थक सिद्ध नहीं हो जाता? देश में क्या हिंद-मुस्लिम तनाव दोबारा नहीं बढ़ जाता? नागरिकता संशोधन कानून को लेकर देश में जो आंदोलन चल रहे थे, क्या उनका विरोध और तूल नहीं पकड़ता? यदि कुछ भाजपाई नेताओं को चार-पांच साल की सजा हो जाती तो क्या वे ऊंची अदालतों के द्वार नहीं खटखटाते?

पहले ही इस मुकदमे को तय होने में 28 साल लग गए। जिन 49 लोगों पर मुकदमा चला था, उनमें से 17 तो संसार से विदा हो गए हैं। उनमें पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी भी थे। इस मामले पर 2009 में लिबरहान आयोग ने 900 पृष्ठों की रपट तैयार करके दी थी। सीबीआई ने 850 गवाहों से बात करके 7000 दस्तावेज खंगाले थे। मान लें कि वर्तमान मोदी सरकार की जगह कोई और सरकार दिल्ली में बैठी होती और वह अदालत पर दबाव डलवाकर या सच्चे-झूठे कई प्रमाण जुटाकर इन आरोपियों को कठघरे में डलवा देती तो क्या भारतीय लोकतंत्र के लिए वह शुभ होता?

यदि राम मंदिर के नेताओं को जेल हो जाती तो सोचिए कि आज के भारत का हाल क्या होता? ज्यादातर नेता वरिष्ठ नागरिक हैं। जनता में उनके प्रति श्रद्धा है। यदि फैसला उनके खिलाफ जाता तो सोचिए कि देश में एक नया तूफान उठ खड़ा होता या नहीं होता? आजकल पूरा देश कोरोना की महामारी से जूझ रहा है, लद्दाख में फौजी संकट आन खड़ा है और कश्मीर में भी काफी उहापोह है, ऐसे हालात में बुद्धिमत्ता इसी में है कि यह फैसला किसी को कैसा भी लगे, फिर भी इसका स्वागत किया जाए।

इस मौके पर एक प्रासंगिक घटना यह भी हुई कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने बड़ी घोषणा कर दी। बड़ी इसलिए क्योंकि अनेक हिंदू साधु-संत संगठन मांग कर रहे हैं कि मथुरा व काशी में भी मस्जिदें हटाकर मंदिर बनाए जाएं। मोहनजी ने कहा है कि यह काम संघ की कार्यसूची में नहीं है। इसी तरह उन्होंने नागरिकता संशोधन कानून के बारे में भी कहा है कि पड़ोसी देशों के हर शरणार्थी का स्वागत किया जाना चाहिए, उसका मजहब चाहे जो हो। बाबरी मस्जिद का यह फैसला अगर उल्टा आ जाता तो भारतीय लोकतंत्र और हिंदुत्व की राजनीति में आजकल जो ये स्वस्थ प्रवृत्तियां उभर रही हैं, वे काफी शिथिल पड़ जातीं। (ये लेखक के अपने विचार हैं)



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डॉ. वेदप्रताप वैदिक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष


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जब भी मैं शक्की लोगों के साथ कोविड-19 या जलवायु परिवर्तन पर बात करता हूं तो मैं एक उपमान का इस्तेमाल करता हूं: कल्पना करें कि आपका बच्चा बीमार है और आप उसे 100 डॉक्टरों को दिखाने ले जाते हैं। इनमें से 99 डॉक्टर एक ही बात कहते हैं और इलाज की सलाह देते हैं। जबकि एक अन्य कहता है कि चिंता की कोई बात नहीं है, बच्चे की बीमारी जादू जैसे गायब हो जाएगी।

क्या माता-पिता सौ में से इस एक डॉक्टर की सलाह मानेंगे? इसे आप मनगढ़ंत न मानें। असल में अगले राष्ट्रपति चुनाव के लिए वोटर के सामने यही सबसे बड़ा सवाल है। क्या आप अपने बच्चे या देश की सेहत को उस व्यक्ति के हाथों में देंगे, जो कोविड-19 और जलवायु परिवर्तन पर 100 में से एक डॉक्टर की सलाह मानता हो। वह ट्रम्प यूनिवर्सिटी के डॉ. डोनाल्ड ट्रम्प हैं, जहां से उन्होंने बीएस की डिग्री ली है।

यह मेरे लिए चौंकाने वाला है कि कितने परंपरावादी सौ में से ऐसे एक डॉक्टर की सलाह को मानेंगे। हो सकता है कि ट्रम्प की रिपब्लिकन पार्टी के लोग प्रकृति में रुचि न रखते हों, लेकिन प्रकृति की उनमें रुचि है। जलवायु परिवर्तन और कोविड-19 दोनों ने ही पिछले एक साल में हमारी जिंदगी को तगड़ी चोट दी है और इसकी एक ही वजह है कि इकोसिस्टम पर सीमा से अधिक दबाव।

हमने जंगलों को रौंदा, उन जंगली जानवरों को खींचा, जो ऐसे वायरस के वाहक थे, जिनके संपर्क में मनुष्य कभी नहीं आया था, CO2 का उत्सर्जन करके धरती को गर्म किया, जिससे तूफान बढ़े, जंगलों में आग लगी। जो बाइडेन अधिक सतर्कता से बढ़ना चाहते हैं और ट्रम्प सावधानी को हवा में उड़ा देना चाहते हैं। इसीलिए विज्ञान जर्नल साइंटिफिक अमेरिकन ने पहली बार कहा ‘साइंटिफिक अमेरिकन ने 175 साल के इतिहास में अब तक किसी भी राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी का समर्थन नहीं किया है।

2020 का चुनाव जिंदगी और मौत का सवाल है। हम आपसे स्वास्थ्य, विज्ञान और राष्ट्रपति पद के लिए जो बाइडेन को वोट देने का आग्रह करते हैं।’ यह चयन कठिन नहीं था। जब कोविड या पर्यावरण संरक्षण की बात होती है तो ट्रम्प का आदर्श वाक्य एक ही है : आपका धन या आपकी जिंदगी? आप किसे अधिक महत्व देते है? बाइडेन का आदर्श वाक्य है आपका धन और आपकी जिंदगी। अगर हम विज्ञान का अनुसरण करते हैं तो आपको इन दोनों में से किसी एक को चुनने की जरूरत नहीं होनी चाहिए।

कोविड-19 पर ट्रम्प का रुख था कि नौकरी या मास्क, सामाजिक दूरी या बिग टेन फुटबॉल, विज्ञान या चर्च। हर चीज में काला या सफेद। नतीजतन आज ढेरों अमेरिकियों के पास नौकरी नहीं है, उनके बच्चे घर पर ही पढ़ रहे हैं। क्योंकि ट्रम्प ने कक्षा, नौकरियों, रेस्टोरेंट में बैठकर खाने व चर्च में जाने के सामने मुखौटे खड़े कर दिए। कई हताश लोगों ने नौकरी, स्कूल और चर्च चुने और वे इसकी कीमत चुकाएंगे।

इसके विपरीत बाइडेन एकजुट करने वाले हैं। उनका कहना है कि अगर हर कोई मास्क पहनेगा, सामाजिक दूरी रखेगा और जांच कराएगा तो हम कई नौकरियां और जिंदगी दोनों को ही बचाएंगे। मास्क की नौकरी से कोई लड़ाई नहीं है। वे महामारी में रोजगार के विकास के ड्राइवर और उसकी रक्षा करने वाले हैं। मास्क स्कूल और अन्य इनडोर गतिविधियों को खोलने के वाहक हैं, दुश्मन नहीं।

यहीं बात जलवायु परिवर्तन पर हुई। ट्रम्प ने लोगों को से कहा कि पर्यावरण बचाना लोगों को बेरोजगार करना है। साफ हवा चाहिए या विकास दर। वहीं बाइडेन नौकरियों के साथ पर्यावरण बचाने के पक्षधर हैं। आप कुछ विज्ञान व बिजनेस पत्रिकाओं की राय देखें।

न्यू साइंटिस्ट: ‘अमेरिका में हरित अर्थव्यवस्था इतनी विकसित हो गई है कि इसमें फॉसिल ईंधन से बिजली बनाने वाले लोगों की संख्या की तुलना में 10 गुना लोगों को नौकरी दी जा सकती है।’
ब्लूमबर्ग.कॉम: ‘इलेक्ट्रिक कार व सोलर उत्पाद बनाने वाली टेस्ला की मार्केट वैल्यू एक्सोन मोबिल कॉरपोरेशन से अधिक हो गई। साफ है कि निवेशक फॉसिल ईंधन से हटकर ऊर्जा के अन्य स्रोतों में रुचि ले रहे हैं।’

इसके अलावा ऐसी कई अन्य राय आई हैं। हमें बस अधिक स्वस्थ होना होगा। हमारी हवा साफ हो, उद्योग, वाहन और घर साफ ऊर्जा तकनीक में अधिक सक्षम हों। जलवायु परिवर्तन हो या न हो, लेकिन 2030 तक दुनिया की जनसंख्या करीब एक अरब और बढ़ने जा रही है। अगर हम जलवायु परिवर्तन को दिवास्वप्न मानते रहे और यह एक कुस्वप्न साबित हुआ तो हम एक प्रजाति के रूप में वास्तविक खतरे में होंगे। इसलिए मैं उम्मीद करता हूं कि अगली डिबेट में बाइडेन सिर्फ यह कहें : ‘मेरे अमेरिकियों आप अपने जंगलों में आग बुझाने के लिए तो किसी आग लगाने वाले की सेवाएं नहीं लेना चाहेंगे।

आप नस्लीय घावों को भरने के लिए किसी विभाजक की सेवाएं भी नहीं चाहेंगे। आप किसी जहर घोलने वाले को अपने पानी को साफ करने के लिए तैनात नहीं करेंगे। इन सबसे अधिक आप ऐसे व्यक्ति की सेवाएं भी नहीं चाहेंगे जो प्रकृति के खिलाफ नौकरियों को और नौकरियों के खिलाफ स्वास्थ्य को खड़ा करे। वह भी ऐसे समय पर जब हमें स्पष्ट तौर पर इन सभी की जरूरत है और हम स्पष्ट तौर पर इन सभी को ले सकते हैं।’ (ये लेखक के अपने विचार हैं)।



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थाॅमस एल. फ्रीडमैन, तीन बार पुलित्ज़र अवॉर्ड विजेता एवं ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ में नियमित स्तंभकार


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वायरस के संक्रमण से बचना है तो वेजिटेरियन डाइट ही सेफ विकल्प है। स्वाइन फ्लू से लेकर कोरोना का संक्रमण फैलाने तक में जानवर एक बड़ी कड़ी साबित हुए हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन कहता है, पिछले 50 सालों में 70 फीसदी वैश्विक बीमारियां जानवरों के जरिए फैली हैं।

कई रिसर्च में यह साबित हो चुका है कि हृदय रोग, कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा कम करना चाहते हैं तो वेजिटेरियन डाइट लें। खाने में फल-सब्जियों की मात्रा को बढ़ाएं। आज वर्ल्ड वेजिटेरियन डे है, इस मौके पर जानिए शाकाहारी खाना आपकी जिंदगी में कितना बदलाव जाता है....


4 वजह: वेजिटेरियन खाना क्यों बेहतर है

1. वायरल डिसीज का खतरा कम हो जाता है
2013 में आई यूनाइटेड नेशंस की संस्था फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन की रिपोर्ट कहती है, दुनियाभर में 90% से ज्यादा मांस फैक्ट्री फार्म से आता है। इन फार्म्स में जानवरों को ठूंस-ठूंसकर रखा जाता है और यहां साफ-सफाई का भी ध्यान नहीं रखा जाता। इस वजह से वायरल डिसीज फैलने का खतरा बढ़ जाता है। हाल ही में गुजरात में फैली वायरल डिसीज कांगो फीवर में भी संक्रमित जानवरों से इंसान को खतरा बताया गया है।

2. दिल ज्यादा खुश रहता है और बीमार कम होता है
नॉनवेज के मुकाबले वेजिटेरियन डाइट आपको ज्यादा स्वस्थ रखती है, इस पर रिसर्च की मुहर भी लग चुकी है। अमेरिकन जर्नल ऑफ क्लीनिकल न्यूट्रीशन में प्रकाशित रिसर्च कहती है, हृदय रोगों का खतरा घटाना है तो शाकाहारी खाना खाइए।

इंग्लैंड और स्कॉटलैंड में 44,561 लोगों पर हुई रिसर्च हुई। इसमें सामने आया कि नॉन-वेजिटेरियन के मुकाबले जो लोग वेजिटेरियन डाइट ले रहे थे उनमें हृदय रोगों के कारण हॉस्पिटल में भर्ती करने की आशंका 32 फीसदी तक कम है। इनमें कोलेस्ट्रॉल का लेवल और ब्लड प्रेशर दोनों ही कम था।

3. फल-सब्जियों की मात्रा बढ़ाते हैं तो कैंसर का खतरा घटता है
अब तक सैकड़ों ऐसी रिसर्च सामने आ चुकी हैं जो कहती हैं, खाने में अगर फल और सब्जियों की मात्रा बढ़ाते हैं तो कैंसर का खतरा कम हो जाता है। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में हुई रिसर्च के मुताबिक, अगर डाइट से रेड मीट को हटा देते हैं तो कोलोन कैंसर होने का खतरा काफी हद तक घट जाता है।

4. डायबिटीज कंट्रोल करना है तो 50% तक फल-सब्जियां खाएं
वियतनाम के मेडिकल न्यूट्रिशनिस्ट डॉ. बिस्वरूप चौधरी कहते हैं, अगर ब्लड शुगर कंट्रोल करना चाहते हैं तो दिनभर की डाइट में 50 फीसदी से ज्यादा फल और सब्जियां लें। इसके बाद ही अनाज शामिल करें। नॉनवेज, अंडा, मछली, मक्खन और रिफाइंड फूड लेने से बचें। ऐसा करते हैं तो ब्लड शुगर काफी हद तक कम किया जा सकता है।

अब बात उस पहल की जिसके कारण यह दिन शुरू हुआ
दुनियाभर के लोगों को शाकाहारी खाना खाने के लिए प्रेरित करने और इसके फायदे बताने के लिए वर्ल्ड वेजिटेरियन डे की शुरुआत हुई। 1 अक्टूबर 1977 को नॉर्थ अमेरिकन वेजिटेरियन सोसायटी ने यह पहल शुरू की।

इस लक्ष्य लोगों को यह भी समझाना था कि वेजिटेरियन डाइट नॉनवेज फूड से ज्यादा हेल्दी है। वेजिटेरियन डाइट बॉडी में अधिक फैट नहीं बढ़ाती और हृदय रोगों का खतरा कम करती है। इसमें मौजूद फायबर और एंटीऑक्सीडेंट्स में कैंसर से लड़ने की क्षमता है।

क्या होगा अगर सभी वेजिटेरियन बन जाएं?

  • 2016 में नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस की एक स्टडी आई थी। इसमें कहा गया था कि अगर दुनिया की सारी आबादी मांस छोड़कर सिर्फ शाकाहार खाना खाने लगे तो 2050 तक ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में 70% तक की कमी आ सकती है।
  • अंदाजन दुनिया में 12 अरब एकड़ जमीन खेती और उससे जुड़े काम में इस्तेमाल होती है। इसमें से भी 68% जमीन जानवरों के लिए इस्तेमाल होती है। अगर सब लोग वेजिटेरियन बन जाएं तो 80% जमीन जानवरों और जंगलों के लिए इस्तेमाल में लाई जाएगी।
  • इससे कार्बन डाय ऑक्साइड की मात्रा कम होगी और क्लाइमेट चेंज से निपटने में मदद मिलेगी। बाकी बची हुई 20% जमीन का इस्तेमाल खेती के लिए हो सकेगा। जबकि, अभी जितनी जमीन पर खेती होती है, उसके एक-तिहाई हिस्से पर जानवरों के लिए चारा उगाया जाता है।

वेजिटेरियन और वेगन डाइट के फर्क को भी समझ लें

वेगन और वेजिटेरियन डाइट में एक सबसे बड़ा अंतर है। वेगन डाइट में ज्यादातर ऐसे फूड शामिल हैं जो पेड़े-पौधों से सीधे तौर पर मिलते हैं। वेगन डाइट में एक बात का खासतौर पर ध्यान दिया जाता है कि जो भी फूड ले रहे हैं वो रसायनिक पदार्थों से तैयार न हुए हों। यानी ऑर्गेनिक फार्मिंग से तैयार होने वाले फूड होने चाहिए।



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World Vegetarian Day 2020: What Are The Advantages Of Vegetarian Food For Your Health? Four Reasons for Going Veggie


source https://www.bhaskar.com/happylife/news/world-vegetarian-day-2020-reasons-for-going-veggie-127767114.html

अमूमन लोग कॉफी तब पीते हैं, जब बॉडी में एनर्जी की कमी महसूस करते हैं या तनाव से जूझ रहे होते हैं। लेकिन, कॉफी के सबसे पुराने ठिकाने इथियोपिया में ऐसा नहीं है। यहां की हर दावत में आपको कॉफी मिलेगी। अफ्रीकी देश इथियोपिया को कॉफी का जन्मस्थल कहते हैं।

आज वर्ल्ड कॉफी डे है, इस मौके पर कॉफी के सबसे बड़े ठिकाने से जानिए 4 दिलचस्प किस्से...

1. जब कॉफी के बीज खाने के बाद बकरियां झूमने लगी थीं
इथियोपिया में कॉफी की खुशबू को कैसे पहचाना गया, इसका यहां एक सबसे दिलचस्प किस्सा मशहूर है। एक समय यहां कालदी नाम का चरवाहा अपनी बकरियों को काफा के जंगल से लेकर निकलता था। एक दिन उसने देखा, यहां जमीन पर पड़ी लाल चेरियां खाने के बाद बकरियां खुशी से झूम रही हैं। चरवाहे ने कुछ चेरियां तोड़ीं और खाईं। स्वाद पसंद आने पर चेरियों को अपने चाचा के पास ले गया।

चाचा बौद्ध धर्म के अनुयायी थे और मठ में रहते थे। उन्होंने मजहबी बंदिश के कारण कॉफी की चेरी को आग में डाल दिया। जैसे ही बीजों ने जलना शुरू किया उसकी खुशबू नशे की तरह चढ़ने लगी। इसके बाद कालदी के चाचा ने इन बीजों का इस्तेमाल खुशबू के लिए करना शुरू किया।

इन्हीं लाल चेरियों से बीज निकालकर उससे कॉफी तैयार की जाती है।

2. जले हुए कॉफी के बीजों को पानी में डाला और ऐसे हुई इसकी शुरुआत
इथियोपिया में काफा के रहने वाले मेसफिन तेकले कहते हैं, यहां कॉफी का चलन कैसे शुरू हुआ इसकी कहानी मैंने अपने दादा से सुनी थी। वह कहते थे एक बार चरवाहे कालदी की मां ने आग में जले हुए बीजों को साफ किया। फिर इसे ठंडा होने के लिए पानी में डाल दिया और तेज खुशबू आने लगी। यहीं से कॉफी पीने का चलन शुरू हुआ।

मेसफिन कहते हैं, यहां के जंगल दुनियाभर के लिए एक तोहफे की तरह हैं। दुनियाभर के लोग यहां पर उगी कॉफी की चुस्कियां लेते हैं। कॉफी यहां की मेहमान नवाजी का हिस्सा है। बचपन से लड़कियों को इसे तैयार करना सिखाया जाता है।

कॉफी सेरेमनी की तैयारी।

3. सामाजिक रिश्तों को मजबूत करने के लिए 3 घंटे चलती है कॉफी सेरेमनी
इथियोपिया में हर खुशी के मौके पर कॉफी सेरेमनी आयोजित की जाती है। यह 2 से 3 घंटे का प्रोग्राम होता है। कॉफी को सर्व करने का काम घर की महिलाएं और बच्चे करते हैं। यह तैयार भी अलग तरह से होती है। कॉफी के दानों को रोस्ट करके उसे पीसते हैं और गर्म पानी के साथ मिलाते हैं। इसमें दूध नहीं मिलाया जाता है, लेकिन शक्कर की मात्रा अधिक रहती है। तैयार होने के बाद इसे सुराहीनुमा बर्तन में लाते हैं और मेहमानों को सर्व करते हैं।

4. यहां कॉफी के पेड़ लगाए नहीं जाते, अपने आप उग आते हैं
इथियोपिया के जंगल में कॉफी की 5 हजार से अधिक किस्में हैं। यहां की जमीन कॉफी के लिए इतनी उपजाऊ है कि पौधे लगाए नहीं जाते, अपने आप जमीन से उग आते हैं। यूनेस्को की रिपोर्ट कहती है, 40 साल पहले इथियोपिया के 40 फीसदी इलाकों में काॅफी के जंगल थे। अब ये घटकर 30 फीसदी रह गए हैं।

कैसे हुई इंटरनेशनल कॉफी डे की शुरुआत
इस दिन का मकसद कॉफी को प्रमोट करना और इसे एक ड्रिंक के तौर पर सेलिब्रेट करना है। इसकी शुरुआत 1 अक्टूबर 2015 को हुई जब इटली के मिलान में इंटरनेशनल कॉफी ऑर्गेनाइजेशन की शुरुआत हुई।

साभार : बीबीसी, होमग्राउंड्स, कम्युनिकॉफी डॉट कॉम



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International coffee day 2020 interesting fact from home of coffee Ethiopia


source https://www.bhaskar.com/happylife/news/international-coffee-day-2020-interesting-fact-from-home-of-coffee-ethiopia-127767224.html

भीख मांगकर गुजारा करने वाला जालंधर का यह व्यक्ति चाहे शारीरिक तौर पर विकलांग है लेकिन मानसिक तौर पर काफी समझदार है। कुछ न होते हुए भी मास्क पहनकर समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभा रहा है। दूसरी तरफ मास्क न पहनने वाले लोगों को इसकी समझदारी का सबक लेना चाहिए क्योंकि मास्क पहनने से आप ही सुरक्षित रहेंगे।

लापरवाही की यह सजा

यह फाेटो हैरान तो जरूर करती है लेकिन अव्यवस्थाओं का यह तंत्र कई बार ऐसी तस्वीरों के लिए मजबूर करता है। इसके लिए कुछ शासन की लापरवाही जिम्मेदार है तो कुछ प्रशासन की...। प्रचार के दौरान जनप्रतिनिधि भी लोगों के गुस्से का शिकार हो रहे हैं तो लापरवाही पर कर्मचारियों को भी लोग नहीं छोड़ रहे हैं। यह तस्वीर है बिहार के मुजफ्फरपुर के रेपुरा गांव की जहां टीकाकरण से पशुओं की मौत पर लोगों ने पशुपालन विभाग के कर्मियों को 9 घंटे बंधक बनाए रखा।

हाईवे की पेट्रोलिंग गाड़ी हादसे में मृत गाय को रस्सी से बांध घसीटकर ले गई

ग्वालियर से शिवपुरी के बीच फोरलेन हाइवे पर आवारा मवेशियों को हटाने और हादसे में मौत होने पर शव व्यवस्थित तरीके से डिस्पोजल करने जिम्मेदार संबंधित टोल प्लाजा संचालित करने वाले कंपनी को दी गई है। लेकिन सतनवाड़ा में एक गाय की हादसे में मौत के बाद हाईवे पेट्रोलिंग गाड़ी से शव को बांधा और घसीटकर ले गए। इस क्रूरता का वीडियो वायरल होने के बाद एनएचएआई के प्रोजेक्ट डायरेक्टर राजेश गुप्ता सफाई दे रहे हैं कि हाईवे पेट्रोलिंग गाड़ी से घसीटकर गाय का शव ले जाने के इस मामले में कार्रवाई करेंगे।

ट्रैक पर आई ट्रेन, फाटक के बीच फंसा वाहन

सीएसईबी चौक रेलवे फाटक पार करने की ऐसी हड़बड़ी की बीच में साहब का वाहन फंस गया। घटना बुधवार की दोपहर 12.23 बजे की है। डीएसपीएम प्लांट से खाली मालगाड़ी रेलवे स्टेशन की ओर जाने का संकेत मिलने पर गेटकीपर ने फाटक को एक-एक कर बंद कर रहा था। इसी बीच बुधवारी की ओर जा रही छत्तीसगढ़ शासन लिखा वाहन क्रमांक सीजी 02, 5524 के चालक ने फाटक पार करने की जल्दबाजी करते हुए फाटक की सीमा लाइन पार कर गया, तब तक सामने का फाटक बंद हो चुका था और पीछे का फाटक भी बंद हो गया। हालांकि वाहन में सिर्फ ड्राइवर सवार था।

अच्छी बारिश का असर

उज्जैन के जवासिया कुमार गांव में अधिकांश कुएं पूरे भर गए हैं। किसान अजय पटेल ने कहा खेत पर बने कुएं की पाल से पानी बाहर निकाला जा सकता है। यह सब अच्छी बारिश का असर है। एक जून से 30 सितंबर तक शहर में 1127 मिमी बारिश हुई। चार महीने में सबसे ज्यादा बारिश जुलाई में 522.2 मिमी दर्ज की गई। यह चार साल में इस अवधि में सबसे ज्यादा है।

भोपाल में 42.06 इंच होगा बारिश का नया कोटा

तीस सालों के बाद मानसूनी सीजन में भोपाल में सामान्य बारिश के कोटे को अपडेट किया गया है। अब बारिश का नया कोटा 42.06 इंच होगा। अभी तक यह 43.64 इंच था। यानी इसमें 1.58 इंच की कमी हुई है। इसकी वजह- मानसून सीजन में बारिश के दिनों की संख्या घटना है। क्योंकि अब पहले जैसी चार- पांच दिनों तक झड़ी नहीं लगती। लेकिन भारी या तेज बारिश के दिनों की संख्या बढ़ी है।

हर रोज पहुंच रहे 500 पर्यटक

लम्बे इंतजार के बाद कुंभलगढ़ का दुर्ग दुधिया रोशनी में नहाया हुआ दिखा। कोरोना महामारी के बीच चले लॉकडाउन के दौरान करीब 6 महीने पहले दुर्ग पर विभाग ने लाइटिंग बंद रखी थी। जो इन दिनों भ्रमण करने पहुंच रहे पर्यटकों के इजाफा के कारण शुरू कर दी गई। दुर्ग पर इस समय में हर रोज तीन सौ से पांच सौ पर्यटक पहुंच रहे हैं। महादेव मंदिर के पास बने लाइट एंड साउंड शो को अभी तक शुरू नहीं किया है। अब पर्यटक दिन में दुर्ग घूमने के बाद शाम को लाइटिंग भी देख सकेंगे। इसका समय शाम 7 से साढ़े सात बजे तक हैं।

ध्वनि की रफ्तार से तीन गुना तेजी से वार कर सकती है

भारत ने बुधवार को सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस का सफल परीक्षण किया। ओडिशा के चांदीपुरा स्थित इंटिग्रेटेड टेस्ट रेंज से इसे सुबह 10.45 बजे दागा गया। डीआरडीओ के मुताबिक, यह मिसाइल ध्वनि की रफ्तार से तीन गुना तेजी से वार कर सकती है। इसकी रफ्तार करीब 3457 किमी. प्रति घंटे है। यह 400 किमी की रेंज तक निशाना लगा सकती है। ब्रह्मोस का नाम दो नदियों के नाम से लिया गया है, इसमें भारत की ब्रह्मपुत्र नदी का ‘ब्रह्म’ और रूस की मोसकावा नदी से ‘मोस’ लिया गया है।



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This person is very mentally mentally challenged but physically challenged, people held animal husbandry department hostage for 9 hours on death of animals due to vaccination in Bihar


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बाबरी मस्जिद मामले में अदालत ने आरोपियों को बरी करते हुए कहा कि घटना पूर्व नियोजित नहीं लगती। वहीं, बरी होने के बाद एक आरोपी जय भगवान गोयल बोले कि ढांचा एजेंडे के तहत ही गिराया था। एकाएक कुछ नहीं हुआ। बहरहाल, चलिए शुरू करते हैं मॉर्निंग न्यूज ब्रीफ...

आज इन 7 इवेंट्स पर रहेगी नजर
1. IPL में आज मुंबई इंडियंस और किंग्स इलेवन पंजाब आमने-सामने होंगे। टॉस शाम 7 बजे होगा। मैच शाम साढ़े 7 बजे शुरू होगा।
2. आज अनुराग कश्यप को पूछताछ के लिए मुंबई के वर्सोवा पुलिस स्टेशन बुलाया गया है। फिल्ममेकर सुबह 11 बजे जाएंगे।
3. झारखंड में आज से स्कूल, सिनेमाघर और धार्मिक स्थल खोलने पर निर्णय लिया जा सकता है।
4. आज से राजस्थान का रणथंभौर टाइगर पार्क खोल दिया जाएगा।
5. मध्य प्रदेश में उच्च शिक्षा विभाग की ऑनलाइन कक्षाएं आज से, करीब 7 लाख छात्र जुड़ेंगे।
6. पंजाब में खेती बिलों को लेकर सबसे बड़ा प्रदर्शन किया जाएगा। अकाली वर्कर और किसान-मजदूर मोहाली से राज्यपाल को मेमोरेंडम देने के लिए चंडीगढ़ जाएंगे।
7. आज से दुर्ग और धमतरी में लॉकडाउन होगा खत्म। दुर्ग में रात 8 बजे तक खुल सकेंगी दुकानें। साप्ताहिक बंदी का निर्णय व्यापारी खुद कर सकेंगे।

अब कल की महत्वपूर्ण 7 खबरें

1. बाबरी मामले में 28 साल बाद आडवाणी-मुरली समेत 32 आरोपी बरी
बाबरी मस्जिद ढांचा ढहाए जाने के 265 दिन बाद मामले की जांच का जिम्मा सीबीआई को सौंपा गया। सीबीआई टीम करीब 3 साल जांच करती रही। फिर सीबीआई के स्पेशल कोर्ट में ही सुनवाई शुरू हुई। आखिरकार 30 सितंबर को फैसला आ गया। घटना के 28 साल बाद बाबरी से सब बरी कर दिए गए। सब यानी सभी 32 आरोपी, जो जिंदा हैं। वैसे कुल 48 आरोपी थे। इनमें से 16 अब नहीं हैं। -पढ़ें पूरी खबर

2. राम मंदिर पर 57 दिन बाद बोले आडवाणी: ‘जय श्रीराम, ये खुशी का पल है’
बाबरी विध्वंस केस में स्पेशल सीबीआई कोर्ट ने बुधवार को लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी समेत सभी 32 आरोपियों को बरी कर दिया। फैसले के बाद लालकृष्ण आडवाणी (92) ने कहा कि यह हम सभी के लिए खुशी का पल है। कोर्ट के निर्णय ने मेरी और पार्टी की रामजन्मभूमि आंदोलन को लेकर प्रतिबद्धता और समर्पण को सही साबित किया है। -पढ़ें पूरी खबर

3. हाथरस गैंगरेप: पुलिस ने रात में खुद ही पीड़िता का शव जला दिया
हाथरस में कथित गैंगरेप पीड़ित का बीती रात पुलिस ने अंतिम संस्कार कर दिया। पीड़ित के भाई ने भास्कर से बात करते हुए कहा, 'पुलिस ने हमें उसका चेहरा तक नहीं देखने दिया। हमें नहीं पता पुलिस ने किसे जलाया।' मोदी ने योगी से कहा है कि दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करें। राज्य सरकार ने 3 सदस्यों की एसआईटी बनाकर 7 दिन में रिपोर्ट देने को कहा है। -पढ़ें पूरी खबर

4. UPSC एग्जाम पर सुप्रीम कोर्ट: लास्ट अटेम्प्ट वाले कैंडीडेट्स को एक और मौका दें
सुप्रीम कोर्ट ने सिविल सेवा (प्रिलिम्स) परीक्षा 2020 पर बुधवार को कहा कि 4 अक्टूबर को होने वाले ये परीक्षाएं कोविड महामारी के कारण नहीं टाली जा सकतीं। केंद्र सरकार इस पर विचार करे कि ऐसे कैंडीडेट़्स को एक और मौका दिया जा सकता है जिनके पास अपना आखिरी अटेम्प्ट बचा है और जो कोरोना के कारण परीक्षा में नहीं बैठ पाएंगे। -पढ़ें पूरी खबर

5. अंगदान करेंगे अमिताभ बच्चन, ट्विटर पर लिखा- मैं अंगदान का संकल्प ले चुका हूं
अमिताभ बच्चन ने 77 साल की उम्र में अंगदान करने का संकल्प लिया है। इस बात की जानकारी उन्होंने मंगलवार देर रात ट्वीट कर दी। उन्होंने एक फोटो भी शेयर किया है, उनके कोट पर हरे रंग का रिबन लगा है, जो कि अंगदान के संकल्प का प्रतीक है। बच्चन ने अपने ट्वीट में लिखा, "मैं अंगदान का संकल्प ले चुका हूं...इसकी पवित्रता दिखाने के लिए हरे रंग का रिबन लगाया है।" -पढ़ें पूरी खबर

6. रिया को हो सकती है 10 से 20 साल की जेल
ड्रग्स मामले में मंगलवार को बॉम्बे हाईकोर्ट की सुनवाई में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के एडीजी अनिल सिंह ने कहा था कि रिया चक्रवर्ती का सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में छोटा सा कनेक्शन है। अब एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दैनिक भास्कर से कहा- रिया और शोविक के केस में डेढ़ किलो चरस जब्त की गई है। उन्हें 10-20 साल तक की सजा हो सकती है। -पढ़ें पूरी खबर

7. आज से होंगे 9 अहम बदलाव: बीमा पॉलिसी में अब ज्यादा बीमारियां कवर होंगी
1 अक्टूबर से देशभर में कई नियमों में बदलाव होने जा रहे हैं। वाहन चलाने वालों और विदेश में पैसा भेजने वालों से लेकर गूगल पर मीटिंग करने वालों तक के लिए इन बदलावों को जानना जरूरी है। इनमें गाड़ी चलाते हुए मोबाइल के इस्तेमाल का भी जिक्र है और मिठाई खरीदते समय ध्यान रखने वाली बात का भी। -पढ़ें पूरी खबर

अब 1 अक्टूबर का इतिहास
1854: भारत में डाक टिकट का प्रचलन प्रारंभ हुआ।
1949: चीन में कम्युनिस्ट पार्टी का शासन आरंभ हुआ।
1967: भारतीय पर्यटन विकास निगम की स्थापना हुई।

आखिर में जिक्र मशहूर उर्दू शायर मजरूह सुल्तानपुरी का। आज ही के दिन 1919 में उनका जन्म हुआ था। पढ़िए उन्हीं का एक मशहूर शेर....



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Riya may be jailed for 10 years, Babri Masjid Demolition Case Verdict, UPSC prelims exam will not be postponed Morning news brief


source https://www.bhaskar.com/national/news/riya-may-be-jailed-for-10-years-babri-masjid-demolition-case-verdict-upsc-prelims-exam-will-not-be-postponed-morning-news-brief-127769440.html
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